Dattatreya Jayanti 2025: कैसे हुआ त्रिदेव के अंश का दिव्य जन्म ? पढ़ें पौराणिक कथा

Edited By Updated: 03 Dec, 2025 11:30 AM

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Dattatreya Jayanti 2025: भगवान दत्तात्रेय को समस्त देवी-देवताओं में अद्वितीय स्थान प्राप्त है, क्योंकि उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव तीनों का अंश विद्यमान है। इन्हें गुरु, परमात्मा और ज्ञान के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इन्हें गुरुदेव...

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Dattatreya Jayanti 2025: भगवान दत्तात्रेय को समस्त देवी-देवताओं में अद्वितीय स्थान प्राप्त है, क्योंकि उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव तीनों का अंश विद्यमान है। इन्हें गुरु, परमात्मा और ज्ञान के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है इसलिए इन्हें गुरुदेव दत्त और परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु भी कहा जाता है। हर वर्ष अगहन की पूर्णिमा पर इनकी जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2025 में दत्तात्रेय जयंती 4 दिसंबर को पड़ेगी। इस दिन उनकी जन्म कथा पढ़ने का विशेष महत्व है क्योंकि इससे त्रिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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दत्तात्रेय भगवान की जन्म कथा
एक समय की बात है, नारद जी महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया के आश्रम पहुंचे। उन्होंने माता अनुसूया के पतिव्रत की अत्यधिक प्रशंसा की। उसी समय देवी सती, मां लक्ष्मी और देवी सरस्वती भी पास ही उपस्थित थीं। नारद जी द्वारा अनुसूया की महानता का वर्णन सुनकर तीनों देवियों के मन में यह जानने की इच्छा जागी कि वास्तव में उनका पतिव्रत कितना दृढ़ है। उन्होंने अपने-अपने पति ब्रह्मा, विष्णु और शिव से अनुरोध किया कि वे साधु के रूप में अनुसूया की परीक्षा लें। तीनों देव सहमत हुए और भिक्षु का वेश धारण कर अत्रि आश्रम पहुंचे।

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माता अनुसूया ने अतिथि स्वरूप आये साधुओं का आदर से स्वागत किया और भिक्षा लाने अंदर गईं। लेकिन भिक्षा देते समय तीनों साधुओं ने एक विचित्र शर्त रख दी कि वे तभी भोजन स्वीकार करेंगे जब माता उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएंगी। यह सुनकर देवी अनुसूया क्षणभर के लिए आश्चर्यचकित हुईं लेकिन तुरंत अपनी दिव्य दृष्टि से पहचान गईं कि ये कोई सामान्य साधु नहीं, बल्कि स्वयं त्रिदेव हैं। अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर उन्होंने तीनों देवों को छह महीने के बालक में बदल दिया और उन्हें अपनी गोद में रख लिया। वे उन्हें स्नान करातीं, दूध पिलातीं और माता की तरह स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करती रहीं।

उधर अपने पतियों के विलंब से लौटने पर देवी सती, लक्ष्मी और सरस्वती चिंतित हो उठीं। नारद जी ने उन्हें पूरी घटना बताई। तीनों देवियां तत्काल माता अनुसूया के पास पहुंचीं और उनसे क्षमा मांगकर त्रिदेवों को उनके वास्तविक स्वरूप में वापस करने का अनुरोध किया।

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