Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Nov, 2025 02:15 PM

Vande Mataram 150 years celebration: भारत की अस्मिता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम्’ प्रसिद्ध बंगाली लेखक और महान कवि बंकिम चंद्र चटर्जी की सुप्रसिद्ध रचना है। संस्कृत और बंगला दोनों भाषाओं में इसे 1875 में लिखा गया और उनके...
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Vande Mataram 150 years celebration: भारत की अस्मिता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम्’ प्रसिद्ध बंगाली लेखक और महान कवि बंकिम चंद्र चटर्जी की सुप्रसिद्ध रचना है। संस्कृत और बंगला दोनों भाषाओं में इसे 1875 में लिखा गया और उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इसे 1882 में प्रकाशित किया गया। यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि भारत के लगभग सभी क्रांतिकारियों, देशभक्तों ने इसे खुले मन से स्वीकार किया और लगभग आधी शताब्दी तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का प्रेरणा स्रोत रहा।
इसे सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में रबींद्रनाथ टैगोर ने गाया था। इसको गाने हेतु 65 सैकेंड का समय निर्धारित है। 2003 में बी.बी.सी. वर्ल्ड सर्विस के अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के आधार पर दुनिया भर के 7000 गीतों में से इसे दूसरा स्थान मिला जोकि भारत के लिए गौरवमयी व गरिमापूर्ण क्षण था।
1870-80 के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत गाना अनिवार्य किया तो बंकिम चंद्र चटर्जी, जो उन दिनों डिप्टी कलैक्टर थे, को बहुत ठेस पहुंची।

उन्होंने इससे आहत होकर अपना एक ऐसा गीत रच डाला, जिसे ‘वंदे मातरम्’ नाम दिया। कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने अपनी ट्रेन यात्रा दौरान लिखा जो 7 नवम्बर, 1875 को पूर्ण हुआ। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे श्रद्धापूर्वक हर ओर प्रसिद्धि दिलाई तथा अन्यों को भी इसे गाने-बजाने के लिए प्रेरित किया।
ब्रिटिश हुकूमत इसकी लोकप्रियता से भयभीत हो गई व इस पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया जाने लगा। इसके विरुद्ध दुष्प्रचार भी किया, परंतु इसकी लोकप्रियता दिनों दिन और बढ़ती गई।

‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय जी ने लाहौर से प्रकाशित अपने जर्नल का नाम भी ‘वंदे मातरम्’ ही रखा था। संविधान सभा ने अध्यक्ष डा. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में इसे राष्ट्रगीत के रूप में मान्यता दी, जिसे सभी ने मुक्तकंठ से स्वीकार किया। राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम्’ ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में निर्णायक भूमिका निभाई तथा इसके बिना उस जोश और जंग में की गई स्वतंत्रता संग्राम की अमर लड़ाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
इस पृष्ठभूमि में इस वर्ष इसकी 150वीं वर्षगांठ हर भारतीय के लिए प्रेरणादायक है तथा भारत के स्वाभिमान व इसके रचयिता के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की देशभक्ति का प्रतीक है।
