हनुमान जी के इस रुप के दर्शन से कटेगा संकट और बदलेगा भाग्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jan, 2024 06:49 AM

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गेंदे के फूल की एक माला गले में धारण करके और बेसन के लड्डू का भोग पाकर सहज ही अपने भक्तों पर कृपालु हो जाने वाले भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी में जब अन्य देवताओं की शक्तियों, सद्गुणों और

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Lord Panchmukhi Hanuman: गेंदे के फूल की एक माला गले में धारण करके और बेसन के लड्डू का भोग पाकर सहज ही अपने भक्तों पर कृपालु हो जाने वाले भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी में जब अन्य देवताओं की शक्तियों, सद्गुणों और आशीर्वाद का समावेश होता है, तब हनुमान जी तीनों लोगों में सुर्कीत के शिखर पर होते हैं। उनका आत्मिक और शारीरिक बल करोड़ों गुणा बढ़ जाता है। आध्यात्मिक परिदृश्य में हनुमान जी रहस्यपूर्ण हो जाते हैं। साधारण भक्तों की साधना उन पर कारगर नहीं होती। 

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रहस्यात्मक स्वरूप में हनुमान पंचमुखी हनुमान कहलाते हैं। पंचमुखी हनुमान जी की उपासना के लिए साधक का दीक्षित और अधिकारी होना आवश्यक है। पंचमुखी हनुमान प्रसन्न हो जाते हैं तो अपने साधक को अमोघ शक्तियां प्रदान करते हैं। पंचमुखी हनुमान जी की उपासना सभी तरह की शुद्धता की मांग करती है इसीलिए गृहस्थ आश्रमों में पंचमुखी हनुमान की पूजा, अर्चना और उनसे संबंधित धार्मिक अनुष्ठान बहुत कम संपन्न होते हैं। 

प्राय: नगर से बाहर निर्जन स्थान में, नदी किनारे अथवा श्मशान भूमि में पंचमुखी हनुमान के सिद्ध पीठ पाए जाते हैं। साधक इन्हीं स्थानों पर पहुंच कर देर रात तक तांत्रिक पद्धतियों से साधनाएं करते हैं। तांत्रिकों की यह साधना सरल, सहज हनुमान जी भक्तों की भक्ति मार्ग का अनुसरण करने वाली साधना न होकर तांत्रिक विधि-विधान पर केन्द्रित और आधारित होती है।
पंचमुखी हनुमान जी के श्री विग्रह में चार मुख तथा उनके ऊपर ऊर्ध्व दिशा में एक मुख होता है।

दिशाओं के अनुसार पूर्व दिशा में हनुमान जी अपने मूल स्वरूप वानर रूप में ही हैं। दक्षिण दिशा में हनुमान जी का मुख सिंह के समान है, पश्चिम दिशा में गरुड़ का मुख है, उत्तर दिशा में हनुमान जी वराह मुख हैं, वहीं सबसे ऊपर हनुमान जी की मुखाकृति अश्व के मुख के समान है।

हनुमान जी के मूल स्वरूप से हटकर चार अतिरिक्त मुखों का संबंध जगत के पालनहार भगवान विष्णु से है। सिंह मुख विष्णु जी के नरसिंह अवतार का प्रतिरूप है, वराह मुख उनके यज्ञ वाराह स्वरूप का और अश्व मुख उनके हयग्रीव अवतार का प्रतिरूप है। गरुड़ का मुख विष्णु जी के वाहन और प्रिय सेवक गरुत्मान का प्रतिनिधि है। हनुमान जी स्वयं रुद्रावतार हैं, इसीलिए उन्हें शंकर सुवन कहा जाता है। पंचमुखी हनुमान जी में नरसिंह भगवान की शक्ति और सामर्थ्य समाहित है। 

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उनका यह स्वरूप उग्र, धर्म तेजस्वी, भीषण, भयनाशक भक्तों के लिए दयालु और कल्याणकारी है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वराह का मुख हनुमान के वैष्णव स्वरूप को दर्शाता है। इस स्वरूप में पंचमुखी हनुमान पृथ्वी को धारण कर सकने वाली और उसके उद्धारकर्ता शक्ति के रूप में दिखाई देते हैं। पंचमुखी हनुमान पृथ्वी का वराह मुख भक्तों के कष्ट निवारण और संकटमोचन स्वरूप का प्रतीकात्मक बिम्ब है। इस स्वरूप के आगे आसुरी शक्तियों का विनाश होता है, भूत-प्रेम, बेताल पंचमुखी हनुमान के साधक के पास भटकने का साहस नहीं करते। 

पंचमुखी हनुमान में समाहित वराह स्वरूप सभी प्रकार के रोगों को विनष्ट करने वाला है। पंचमुखी हनुमान जी में भगवान विष्णु के अनन्य सेवक गरुड़ जी भी प्रतिष्ठित हैं। गरुड़ जी की चर्चा ऋग्वेद में बार-बार आती है। 

पंचमुखी हनुमान की साधना गृहस्थ आश्रमों में रहने वाले साधक भी कर सकते हैं। बस उन्हें पंचमुखी हनुमान जी के किसी मंदिर अथवा शक्तिपीठ पर पहुंच कर श्रद्धापूर्वक मंगलवार और शनिवार को दर्शन करना चाहिए। इससे जीवन में जितना भी मुश्किल समय क्यों न चल रहा हो उसे राहत मिलती है। मंद पड़ा भाग्य जागृत अवस्था में आता है। 

घर की दक्षिण दिशा में हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप का चित्र स्थापित करने से सभी बुरी बलाओं का नाश होता है।  हनुमानजी का प्रभाव इस दिशा में अधिक होता है। कोई भी नकारात्मक शक्ति, जादू-टोना, किए-कराए की काट है हनुमान जी का पंचमुखी रुप।

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