Edited By Sarita Thapa,Updated: 02 Sep, 2025 06:00 AM

Parivartini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में हर एक एकादशी का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
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Parivartini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में हर एक एकादशी का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस बार परिवर्तिनी एकादशी 03 सितंबर को मनाई जाएगी। माना जाता है कि इस दिन विष्णु जी की पूजा करने और कथा पढ़ने से मन की हर मनोकामना पूरी होती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी के व्रत कथा के बारे में-
Parivartini Ekadashi Vrat Katha परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट लेते हैं। एक दिन युधिष्ठिर भगवान से बोले कि भगवान! मुझे अति संदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि के बांधा और वामन रूप रखकर क्या क्या लीलाएं की? सो आप मुझसे विस्तार से असुरराज राजा बली ने अपने तेज और प्रताप के दम पर तीनों लोगों पर अपना अधिकार कर लिया था। राजा बलि पूजा पाठ और दान-पुण्य बहुत करते था और जो भी उसके द्वार पर जाता है, उसे खाली हाथ नहीं जाने देता था। भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा लेने के लिए वामन अवतार लिया और उसके महल में गए, जहां यज्ञ हो रहा था। तब राजा बलि ने कहा कि हे वामन देव आपको क्या चाहिए। तब वामन देव ने कहा कि मुझे तीन पग जमीन चाहिए।

राजा बलि ने कहा कि आप इतने छोटे से हो, तीन पग जमीन में क्या पाओगे लेकिन वामन देव अपनी बात पर अडिग रहे। तब राजा बलि ने तीन पग भूमि देने का वचन स्वीकार किया। फिर वामन देव ने अपने विशाल स्वरुप से दो पग में पूरी धरती और आकाश माप लिया था लेकिन तीसरा पग कहां रखें, ये सोच रहे थे। तब वामन देव ने राजा बलि से कहा कि हे राजन मैं तीसरा पग कहां रखूं। राजा बलि ने कहा कि हे वामन भगवान आप अपने तीसरे पग को मेरे सिर पर रख दीजिए क्योंकि असुरराज राजा बलि पहचान गए थे कि भगवान विष्णु वामन देव का रूप धारण करके आए हैं। भगवान के पैर रखने के बाद राजा बलि पाताल लोक में समाने लगे थे तब राजा बलि ने भगवान से अपने साथ चलने के लिए आग्रह किया था। फिर भगवान विष्णु ने राजा बलि के साथ पाताल लोक चलने का वचन दे दिया।
इसके साथ ही भगवान विष्णु ने तीनों लोगों को दैत्य शासन से मुक्त कर दिया। तब से एकादशी का व्रत रखा जाता है। कहा जाता है, एकादशी के दिन व्रत कर इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। भादों मास में पड़ने वाली परिवर्तिनी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के सामान ही माना जाता है। इस व्रत के बारे में महाभारत में भी कहा गया है। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को परिवर्तिनी एकादशी व्रत के बारे में बताया था। इस दिन भगवान विष्णु की वामन और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। साथ ही धन की कमी भी नहीं होती है।
