Edited By Prachi Sharma,Updated: 09 Nov, 2025 07:00 AM

रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया था। वह बहुत कष्ट दे रहा था। एक भक्त ने उनसे कहा- “आप तो इतने बड़े संत हैं अगर एक बार मन को एकाग्र करके कह दें कि रोग चला जा! रोग चला जा! तो यह निश्चय ही चला जाएगा।”
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Ramakrishna Paramahamsa Story: रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया था। वह बहुत कष्ट दे रहा था। एक भक्त ने उनसे कहा- “आप तो इतने बड़े संत हैं अगर एक बार मन को एकाग्र करके कह दें कि रोग चला जा! रोग चला जा! तो यह निश्चय ही चला जाएगा।”
परमहंस बोले- “जो मन सच्चिदानंदमयी मां का स्मरण करने के लिए मिला है, उसे मैं इस हाड़-मांस के पिंजरे की सुरक्षा के लिए क्यों लगाऊं ? इस रोग के चले जाने से क्या मिलना है ?”
उनकी तकलीफ देखकर दुखी हो रहे एक अन्य शिष्य ने कहा- “आप मां की प्रार्थना करते समय उनसे ही क्यों नहीं कह देते कि वह आपका रोग मिटा दें।”

रामकृष्ण बोले- “मां तो सर्वज्ञ हैं और दयामयी भी। उनसे अपना दुख क्या सुनाना और क्या याचना करना। उन्हें मेरे कल्याण के लिए उचित लगता है, सो कर ही रही हैं। उनकी व्यवस्था में हाथ डालने का अपराध मुझसे नहीं होगा।”
