Edited By Sarita Thapa,Updated: 13 Nov, 2025 07:49 AM

दक्षिण कोसलराज ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के युवराज दशरथ से सुनिश्चित किया। आरंभ से ही कौशल्या जी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। वह निरंतर भगवान की पूजा करती थीं, अनेक व्रत रखती और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं।
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Religious Katha: दक्षिण कोसलराज ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के युवराज दशरथ से सुनिश्चित किया। आरंभ से ही कौशल्या जी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। वह निरंतर भगवान की पूजा करती थीं, अनेक व्रत रखती और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं। महाराज दशरथ ने अनेक विवाह किए। सबसे छोटी महारानी कैकेयी ने उन्हें अत्यधिक आकर्षित किया। महर्षि वशिष्ठ के आदेश से श्रृंगी ऋषि आमंत्रित हुए। पुत्रेष्टि यज्ञ में प्रकट होकर अग्निदेव ने चरू प्रदान किया। चरू का आधा भाग कौशल्या जी को प्राप्त हुआ।

पातिव्रत्य, धर्म, साधु सेवा, भगवदाराधना सब एक-साथ सफल हुईं। भगवान राम ने माता कौशल्या की गोद को विश्व के लिए वंदनीय बना दिया। भगवान की विश्वमोहिनी मूर्ति के दर्शन से उनके सारे कष्ट! परमानंद में बदल गए। ‘‘मेरा राम आज युवराज होगा।’’
माता कौशल्या का हृदय यह सोचकर प्रसन्नता से उछल रहा था। उन्होंने पूरी रात भगवान की आराधना में व्यतीत की। प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर वह भगवान की पूजा में लग गईं। पूजा के बाद उन्होंने पुष्पांजलि अर्पित कर भगवान को प्रणाम किया।
इसी समय रघुनाथ ने आकर माता के चरणों में मस्तक झुकाया। कौशल्या जी ने श्रीराम को उठाकर हृदय से लगाया और कहा, ‘‘बेटा! कुछ कलेऊ तो कर लो। अभिषेक में अभी बहुत विलम्ब होगा।’’
‘‘मेरा अभिषेक तो हो गया मां! पिता जी ने मुझे चौदह वर्ष के लिए वन का राज्य दिया है।’’
श्री राम ने कहा। ‘‘राम! तुम परिहास तो नहीं कर रहे हो? महाराज तुम्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय मानते हैं। किस अपराध से उन्होंने तुम्हें वन में वनवास दिया है?

मैं तुम्हें आदेश देती हूं कि तुम वन नहीं जाओगे, क्योंकि माता पिता से दस गुणा बड़ी है, परंतु यदि इसमें छोटी माता कैकेयी की भी इच्छा सम्मिलित है, तो वन का राज्य तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के राज्य से भी बढ़कर है।’’
माता कौशल्या ने हृदय पर पत्थर रखकर राघवेंद्र को वन में जाने का आदेश दे दिया। उनके दुख का कोई पार नहीं था। ‘‘कौशल्या! मैं तुम्हारा अपराधी हूं, अपने पति को क्षमा कर दो।’’
महाराज दशरथ ने करुण स्वर में कहा। ‘‘मेरे देव मुझे क्षमा करें।’’
पति के दीन वचन सुनकर कौशल्या जी उनके चरणों में गिर पड़ीं और बोलीं, ‘‘स्वामी दीनतापूर्वक जिस स्त्री की प्रार्थना करता है, उस स्त्री के धर्म का नाश होता है। पति ही स्त्री के लिए लोक और परलोक का एकमात्र स्वामी है।’’
इस तरह कौशल्या जी ने महाराज को अनेक प्रकार से सांत्वना दी। श्री राम के वियोग में महाराज दशरथ ने शरीर त्याग दिया। माता कौशल्या सती होना चाहती थीं, परंतु श्री भरत के स्नेह ने उन्हें रोक दिया। चौदह वर्ष का समय एक-एक पल युग की भांति बीत गया। श्रीराम आए, आज भी वह मां के लिए शिशु ही तो थे।
