शुभ काम से पहले बोलें ये मंत्र, गजानन करेंगे सभी संकटों का अंत

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jan, 2023 06:45 AM

religious katha of ganesh ji

एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया।

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एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेश जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेश जी को न्यौता नहीं दिया है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए हैं ?

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सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए। विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्यौता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्यौता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थी। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिन भर में चाहिए। यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

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इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया-यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर का ध्यान रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। होना क्या था कि इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझा कर घर की रखवाली करने बैठा दिया।

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बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें तो वह रास्ता खोद देगी, जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा। अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन नरम कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश की परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब नारद जी ने कहा-आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए।

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गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले श्री गणेशाय नम:  कह कर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओ ! आपने सर्वप्रथम गणेश जी को नहीं मनाया होगा और न ही उनका पूजन किया होगा इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं।

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आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोल कर जाएं तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह सम्पन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।
हे गणेश जी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो।। 

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