Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Sep, 2025 07:00 AM

Inspirational Context: सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में कई ज्योतिषी थे, परन्तु वह कोई काम शुभ लग्न देख कर या ज्योतिषी की सलाह लेकर नहीं करते थे। एक दिन राज ज्योतिषी सम्राट विक्रमादित्य के पास आए और बोले, ‘‘महाराज, आपके दरबार में कई ज्योतिषी हैं।
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Inspirational Context: सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में कई ज्योतिषी थे, परन्तु वह कोई काम शुभ लग्न देख कर या ज्योतिषी की सलाह लेकर नहीं करते थे। एक दिन राज ज्योतिषी सम्राट विक्रमादित्य के पास आए और बोले, ‘‘महाराज, आपके दरबार में कई ज्योतिषी हैं।
आपकी ओर से हमें सभी सुविधाएं मिली हुई हैं, परन्तु आप कभी हमारी सेवाएं नहीं लेते। आज मैं आप की हस्तरेखा देख कर यह जानना चाहता हूं कि आप ऐसा क्यों करते हैं ?’’
सम्राट विक्रमादित्य ने कहा, ‘‘मेरे पास इतना समय नहीं रहता कि मैं आप लोगों से सलाह ले सकूं। जहां तक हस्तरेखाओं की बात है, तो मैं इनमें विश्वास नहीं रखता लेकिन आप कह रहे हैं तो देख लीजिए।’’
हाथ देख कर राज ज्योतिषी चक्कर में पड़ गए। उनकी आवाज बंद हो गई।
राजा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ। आप इतने परेशान क्यों हैं ?’’
राज ज्योतिषी ने कहा, ‘‘राजन आप की हस्तरेखाएं तो कुछ और कहती हैं। ज्योतिष के अनुसार आपको तो दुर्बल और दीनहीन होना चाहिए था लेकिन आप तो इसके विपरीत हैं। हजारों वर्षों से ज्योतिष विद्या पर विश्वास करने वाले लोग आपकी रेखाएं देख कर भ्रमित हो जाएंगे। समझ में नहीं आ रहा कि ज्योतिष को सच मानूं या आप की रेखाओं को।’’

विक्रमादित्य ने कहा, ‘‘अभी तो आप ने मेरे बाहरी लक्षणों को ही देखा है, अब आप हमारे अंदर झांक कर देखिए।’’
इतना कह कर राजा ने तलवार की नोक अपने सीने में लगा दी। राज ज्योतिषी घबरा कर बोले, ‘‘बस महाराज रहने दीजिए।’’
राजा ने कहा, ‘‘ज्योतिषी जी महाराज, आप परेशान मत हों। ज्योतिष विद्या भी तभी सार्थक सिद्ध होती है जब मनुष्य में कुछ करने का संकल्प हो। हस्तरेखाएं तो भाग्य नहीं बदल सकतीं लेकिन मनुष्य में यदि पुरुषार्थ है, दुर्भाग्य से लड़ने की शक्ति है तो उसकी नकारात्मक रेखाएं भी अपने रूप बदल सकती हैं। लगता है मेरे साथ ऐसा ही हुआ है।’’
