Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jan, 2021 01:39 AM

संध्योपासना मंत्र से सजे नित्य कर्म का नाम है। प्रतिदिन समय की संधि के काल में संध्या करने का विधान है। रात्रि पूर्वाह्न का, पूर्वाहन पराह्न का, पराह्न-पूर्वरात्रि का तथा पूर्वरात्रि-पररात्रि का-ये चार संधि
Sandhyopasana: संध्योपासना मंत्र से सजे नित्य कर्म का नाम है। प्रतिदिन समय की संधि के काल में संध्या करने का विधान है। रात्रि पूर्वाह्न का, पूर्वाहन पराह्न का, पराह्न-पूर्वरात्रि का तथा पूर्वरात्रि-पररात्रि का-ये चार संधि काल माने जाते हैं। इन चारों संध्याओं में मध्यरात्रि की संध्या की उपासना तो योगी तथा मंत्रसाधक करते हैं। साधारणत: द्विजों के लिए प्रात: मध्याहन और सायंकाल की संध्या श्रेष्ठ बतलाई गई है।
When is sandhyandandanam performed: प्रात: संध्या में रक्तवर्णा, ब्रह्मदैवत्या, हंसारूढ़ा सावित्री देवी की भावना है। मध्याह्न संध्या में श्वेतवर्णा, युवती, वृषभासना, रूददैवत्या गायत्री देवी की भावना है और सायं-संध्या में कृष्णवर्णा, वृद्धा, गरुड़वाहना, विष्णुदैवत्या, सरस्वती देवी की भावना है, इन तीनों संध्याओं में अनुक्रम में भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक तथा ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद की भी भावना है।
Sandhya Upasana Paddhati: संध्योपासना से चित्त की शुद्धि और शांति तो मिलती ही है साथ ही यह ब्रह्मविद्या प्राप्ति का सहज साधन भी है।
How to Perform Sandhya Upasana: संध्यापासना में चित्त की शुद्धि के लिए अनेक शक्तियों का विनियोग किया जाता है। मार्जन, अघमर्षणादि में भावशक्ति, गायत्री जप, अर्घ्यप्रदानादि में मंत्रशक्ति, आचमन, भस्माधारणादि में द्रव्यशक्ति एवं प्राणयामादि में क्रिया शक्ति का विनियोग करके साध्य को सिद्ध करने की योजना इस संध्या कर्म में व्यक्त होती है। इससे दिव्य शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसके नित्य नियम से दुर्लभ ब्रह्म विद्या की भी प्राप्ति होती है।