Satyendranath Bosu death anniversary: गर्म विचारों से प्रभावित सत्येंद्रनाथ बोस से डरते थे अंग्रेज

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Nov, 2023 11:27 AM

satyendranath bosu death anniversary

भारत को क्रूर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने अपना बहुमूल्य जीवन अर्पित किया, परन्तु आजादी के बाद इन क्रांतिकारी

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Satyendranath Bosu death anniversary 2023: भारत को क्रूर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने अपना बहुमूल्य जीवन अर्पित किया, परन्तु आजादी के बाद इन क्रांतिकारी शूरवीरों को पूरी तरह भुला दिया गया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और अरबिन्दो घोष आदि के गर्म विचारों से प्रभावित सत्येन्द्रनाथ बोस ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे। 

बलिदान की राह पर चलने वाले ‘अनुशीलन समिति’ के सदस्य सत्येंद्र नाथ बोस ने आजाद भारत के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। ‘अलीपुर बम कांड’ में मुख्य संदिग्ध आरोपी अरबिंदो घोष को बचाने के लिए इन्होंने अलीपुर जेल अस्पताल में सरकारी गवाह बने गद्दार नरेंद्रनाथ गोस्वामी की कन्हाई लाल दत्ता की मदद से, गोली मारकर हत्या कर दी। 30 जुलाई, 1882 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले (वर्तमान में पश्चिम मिदनापुर) में जन्मे सत्येन्द्रनाथ बोस, श्री अरबिंदो के मामा थे, हालांकि उम्र में वह उनसे लगभग 10 वर्ष छोटे थे। पारिवारिक सदस्य होने के कारण इनके विचार लोकमान्य तिलक, श्री अरबिंदो आदि से मिलते थे। इन्हीं की प्रेरणा तथा स्वामी विवेकानंद के प्रभाव से सत्येंद्रनाथ बोस ने ‘छात्र भंडार’ नामक संस्था बनाई, जिसका मुख्य उद्देश्य स्वदेशी का प्रचार करना था, लेकिन इस संस्था ने युवाओं को क्रांतिकारी दल से जोड़ने का कार्य भी किया। 

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सत्येंद्रनाथ बोस ने ‘सोनार बांग्ला’ नामक ज्वलंत पत्रक भी लिखा था। किंग्सफोर्ड की हत्या कराने के लिए सत्येंद्रनाथ बोस ने अपने शिष्य खुदीराम बोस को प्रेरित किया था। किंग्सफोर्ड पर हमले की घटना के बाद अवैध तरीके से हथियार रखने के कारण सत्येंद्रनाथ बोस को 2 महीने की सजा हुई और उन्हें अलीपुर जेल भेज दिया गया। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में 1908 की ‘अलीपुर बम कांड’ मुख्य है। इस मामले के प्रमुख अभियुक्तों में अरबिंदो घोष, उनके भाई बारिद्र कुमार घोष और साथ ही ‘अनुशीलन समिति’ के 38 अन्य बंगाली राष्ट्रवादी थे। उन्हें मुकद्दमे से पहले अलीपुर में प्रैसीडैंसी जेल में रखा गया था, जहां नरेंद्र नाथ गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया था और उसने बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन और क्रांतिकारियों की जानकारी ब्रिटिश हुकूमत को दे दी। 

सत्येंद्रनाथ बोस और कन्हाई लाल दत्ता ने नरेंद्र नाथ गोस्वामी की हत्या करने की योजना बनाई, जिसे अस्पताल में रखा गया था। कन्हाई तथा सत्येन्द्र बीमारी का बहाना बनाकर वहां आ गए और एक दिन मौका देखकर कन्हाई ने नरेन्द्र गोस्वामी पर गोली दाग दी और देशद्रोही धरती पर लुढ़क गया। इन दोनों ने भागने का प्रयास करने की बजाय अपनी गिरफ्तारी दे दी।

21 अक्तूबर, 1908 को हाई कोर्ट ने कन्हाई लाल को मौत की और सत्येंद्र नाथ बोस को उम्रकैद की सजा सुनाई। सत्येन्द्रनाथ के मुकद्दमे में सत्र न्यायाधीश ने जूरी के बहुमत के फैसले से असहमत होकर मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया, जहां सत्येन्द्रनाथ को दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई। 21 नवम्बर, 1908 को 26 वर्ष के इस युवा को फांसी दे दी गई। क्रूर अंग्रेजों ने उनका शव उनके परिजनों को नहीं सौंपा और खुद ही अंतिम संस्कार कर दिया। अंग्रेजों को डर था कि लोग जुटेंगे तो उसके विरुद्ध आंदोलन और तेज होता चला जाएगा।

 

 

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