Edited By Sarita Thapa,Updated: 26 Jul, 2025 11:20 AM

Sawan Putrada Ekadashi: सावन का पवित्र महीना चल रहा है, चारों ओर शिवभक्ति का उत्सव है और इसी पुण्यकाल में आने वाली है एक ऐसी एकादशी जिसका महत्व हर उस व्यक्ति के लिए विशेष है जो संतान सुख की कामना रखता है।
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Sawan Putrada Ekadashi: सावन का पवित्र महीना चल रहा है, चारों ओर शिवभक्ति का उत्सव है और इसी पुण्यकाल में आने वाली है एक ऐसी एकादशी जिसका महत्व हर उस व्यक्ति के लिए विशेष है जो संतान सुख की कामना रखता है। सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन आने वाली एकादशी को ही श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है, एक बार पौष मास में तो दूसरी सावन के महीने में। कहा जाता है कि अगर कोई विवाहित जोड़ा लंबे समय से संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, लेकिन बार-बार निराशा हाथ लगती है, तो पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यहीं नहीं सावन के मास में आने की वजह से ये व्रत और भी ज्यादा प्रभावशाली बन जाता है क्योंकि इस दौरान श्री हरि के साथ-साथ महादेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। तो आइए जानते हैं कि सावन में कब मनाई जा रही है पुत्रदा एकादशी और क्या रहेगा इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
सावन पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि का आरंभ 04 अगस्त को सुबह 11 बजकर 41 मिनट पर होगा और इसका समापन 05 अगस्त को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट पर होगा। इस हिसाब से श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत 05 अगस्त को रखा जाएगा। अब बात करते हैं इसके पारण की तो श्रावण पुत्रदा एकादशी का पारण 06 अगस्त को किया जाएगा जिसका समय सुबह 05 बजकर 45 मिनट से सुबह 08 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि संतान से जुड़ी सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। विशेष रूप से जो विवाहित जोड़े संतान सुख की कामना रखते हैं उनके लिए यह एकादशी वरदान के समान मानी जाती है। इसके अलावा इस दिन पूजा अर्चना और व्रत करने से साधक के सुख और सौभाग्य में भी बढ़ोतरी होती है।

सावन पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत की शुरुआत एक दिन पहले से ही हो जाती है। व्रत से ठीक एक रात पहले आपको सात्विक भोजन करना चाहिए, यानी ऐसा भोजन जिसमें लहसुन-प्याज और तामसिक चीजें न हों । व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद घर और पूजा स्थान को अच्छे से साफ करें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें। अब पूजा के लिए एक लकड़ी की चौकी लें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। चौकी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें। भगवान की पूजा में पीले फूल, फल, पंचामृत, पंजीरी, मिश्री आदि अर्पित करें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। विशेष ध्यान दें कि तुलसी का पत्ता ज़रूर अर्पित करें क्योंकि यह बिना विष्णु पूजन अधूरा माना जाता है। इसके बाद एक दीपक जलाएं और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें। फिर एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करें और विधिवत आरती करके भगवान से संतान सुख की प्रार्थना करें। पूरा दिन व्रत रखें और अगले दिन प्रातः पारण के समय व्रत का समापन करें।
