Shani Pradosh Vrat Katha: शनि प्रदोष व्रत की कथा से खुलते हैं भाग्य के द्वार, जरूर पढ़ें

Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 May, 2025 06:45 AM

shani pradosh vrat katha

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और यह महीने में दो बार आता है  एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। इस दिन शिवजी की आराधना करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Shani Pradosh Vrat Katha: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और यह महीने में दो बार आता है  एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। इस दिन शिवजी की आराधना करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति तथा समृद्धि का वास होता है।

वेदों और शास्त्रों के अनुसार, जब प्रदोष व्रत शनिवार के दिन आता है तो उसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है, जो और भी विशेष हो जाता है। साल 2025 में, यह व्रत 24 मई को शनिवार के दिन पड़ा है। इस दिन शाम के समय यानी सूर्यास्त के बाद पूजा करने का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि यह समय भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

शनि प्रदोष व्रत का एक खास नियम यह है कि इसकी कथा सुने या पढ़े बिना व्रत अधूरा माना जाता है। इसलिए व्रत करने वाले श्रद्धालु इस दिन विशेष रूप से प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करते हैं, ताकि उन्हें पूर्ण फल की प्राप्ति हो सके। यह कथा भगवान शिव की महिमा, उनके कृपा स्वरूप और भक्तों के प्रति करुणा को दर्शाती है। इसके माध्यम से यह संदेश मिलता है कि यदि व्यक्ति सच्चे मन से भक्ति करे और गलतियों का प्रायश्चित करे, तो भगवान शिव उसकी सभी बाधाएं दूर कर सकते हैं।

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शनि प्रदोष के दिन पढ़ें व्रत कथा 

प्राचीन समय की बात है, एक गांव था जिसका नाम था अंबापुर। वहां एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी, जिसने अपने पति को बहुत पहले खो दिया था। पति के जाने के बाद वह अकेली और असहाय हो गई थी। गुज़ारा करने के लिए वह रोज़ गांव में भिक्षा मांगती और जैसे-तैसे अपना जीवन बिताती थी। एक दिन, जब वह रोज़ की तरह भिक्षा मांगकर अपने घर लौट रही थी, तो रास्ते में उसकी नजर दो छोटे बच्चों पर पड़ी। वे दोनों बेहद दुखी और अकेले दिखाई दे रहे थे। उन्हें देखकर ब्राह्मणी का हृदय द्रवित हो गया और उसने सोचा  आखिर ये बच्चे हैं किसके ? कौन हैं इनके माता-पिता? इन सवालों के जवाब तो नहीं मिले लेकिन करुणा से भरकर वह उन दोनों बच्चों को अपने साथ अपने घर ले आई। समय बीतता गया और दोनों बालक धीरे-धीरे बड़े होने लगे। ब्राह्मणी ने उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला और स्नेह दिया जब वे किशोरावस्था में पहुंचे, तो एक दिन ब्राह्मणी उन्हें लेकर पास के आश्रम गई, जहां महान ऋषि शांडिल्य निवास करते थे। वहां पहुंचकर उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया और विनम्रता से निवेदन किया, "हे ऋषिवर, कृपया बताइए, ये दोनों बालक कौन हैं ? इनके असली माता-पिता कौन हैं ?"

जब ब्राह्मणी ने ऋषि शांडिल्य से उन बालकों की असली पहचान पूछी, तो ऋषि ने शांति से उत्तर दिया, "हे देवी, ये कोई साधारण बालक नहीं हैं। ये तो विदर्भ राज्य के राजकुमार हैं। उनके राज्य पर गंधर्व नरेश ने आक्रमण किया था, जिसमें वे अपना सारा वैभव और राजपाट खो बैठे। अब वे बेघर और असहाय हैं।"

यह सुनकर ब्राह्मणी की आंखों में करुणा और चिंता दोनों झलकने लगीं। उन्होंने ऋषि से निवेदन किया, "ऋषिवर, कृपा करके कोई ऐसा मार्ग बताइए जिससे इनका खोया हुआ राज्य फिर से मिल सके।"

तब ऋषि शांडिल्य ने उन्हें एक उपाय बताया, यदि तुम इन दोनों बालकों के साथ श्रद्धा और निष्ठा से भगवान शिव का प्रदोष व्रत करो, तो शिवजी अवश्य कृपा करेंगे और सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा।"

ब्राह्मणी ने बिना विलंब किए उस व्रत को करना स्वीकार कर लिया। तीनों ने मिलकर भावपूर्ण तरीके से प्रदोष व्रत का पालन किया, शिवजी की पूजा की और व्रत की कथा सुनी।

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कुछ समय बाद, संयोग से उन राजकुमारों में से बड़े राजकुमार की भेंट एक राजकुमारी अंशुमती से हुई। बातचीत और जान-पहचान के बाद, दोनों ने एक-दूसरे से विवाह करने की इच्छा जताई। जब यह बात अंशुमती के पिता को पता चली, तो उन्होंने गंधर्व नरेश के खिलाफ युद्ध में राजकुमारों का साथ देने का निर्णय लिया। उस युद्ध में शिवजी की कृपा और प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से राजकुमारों ने विजय प्राप्त की और अपना खोया हुआ राज्य फिर से प्राप्त कर लिया।

राज्य वापस मिलने के बाद, वे राजकुमार ब्राह्मणी को कभी नहीं भूले। उन्होंने उन्हें अपने राजदरबार में विशेष सम्मान दिया। ब्राह्मणी, जो कभी भिक्षा मांगकर जीवन गुजारती थीं, अब सम्मान, समृद्धि और संतोष के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगीं।

इस प्रकार प्रदोष व्रत के प्रभाव से न केवल राजकुमारों को उनका राजपाट मिला, बल्कि ब्राह्मणी को भी नया जीवन मिला।

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