Shardiya Navratri 2020: इसलिए देवी दुर्गा कहलाई माता शेरांवाली, आप भी ज़रूर जानें जुड़ी कथा

Edited By Jyoti,Updated: 17 Oct, 2020 05:44 PM

shardiya navratri 2020

इस बार की नवरात्रि की बात करें तो कोरोना के कारण इसमें कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। मगर लोगों के अंदर अपनी देवी मां को लेकर आस्था की कमी बिल्कुल नहीं हुई। लोग कोरोना के नियमों को अपनाते हुए देशभर में स्थित विभिन्न मंदिरों आदि में जाकर देवी मां का...

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इस बार की नवरात्रि की बात करें तो कोरोना के कारण इसमें कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। मगर लोगों के अंदर अपनी देवी मां को लेकर आस्था की कमी बिल्कुल नहीं हुई। लोग कोरोना के नियमों को अपनाते हुए देशभर में स्थित विभिन्न मंदिरों आदि में जाकर देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। बताया जाता है देश दुनिया में स्थित इन मंदिरों में कई पर देवी मां पिंडी या शक्तिपीठ के रूप में विराजमान होती हैं तो कहीं पर इनकी भव्य प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। मगर इन मंदिरों में एक चीज़ जो आम होती है वो है मंदिर में प्रतिष्ठित देवी दुर्गा का वाहन। जी हां, जैसे कि आप जानते हैं कि माता रानी के प्रत्येक मंदिर में उनका वाहन शेर ही होता है। जिस कारण इन्हें शेरांवाली माता भी कहा जाता है। मगर क्यों इनका वाहन शेर ही है, और क्यों इन्हें शेरांवाली कहा जाने लगा, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि विभिन्न प्रकार के नामों वालों मां को शेरांवाली क्यों कहा जाने लगा। 
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दरअसल इससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शंकर को अपने अर्धांग के रूप में पाने के लिए कई हज़ारों वर्ष तक तपस्या की थी। देवी पार्वती द्वारा किया जाने वाला ये तेज इतना अधिक था कि देवी पार्वती का रंग गोरे से सांवला हो गया। हालांकि देवी की तपस्या सफल हो गई और उन्हें पति के रूप में प्राप्त कर लिया। एक बार की बात है, देवी पार्वती और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठे थे। जिस दौरान हास्य बोध में भगवान शंकर ने देवी पार्वती को काली कह डाला। अपने पति के मुख से ये शब्द सुनकर उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। जिस कारण वे तुंरत कैलाश पर्वत को छोड़ वन में आकर गोरे रंग के लिए तपस्या करने लगी। ऐसी कथाएं हैं कि जब वे वन में तपस्या कर रही थी, तभी वहां एक भूखा शेर मां को खाने के उद्देश्य से वहां जा पहुंचा। परंतु जब शेर ने मां को देखा तो वह आराम से वहां बैठकर देखने लगा। ऐसे करते हुए सालों साल बीत गए मगर वह शेर वहीं पर बैठा रहा। 

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जब देवी पार्वती की तपस्या संपूर्ण हुई तो भगवान शिव वहां उन्हें गोरा होने का वरदान देने पहुंचे और देवी को वरदान दिया। जिसक बाद देवी पार्वती गंगा स्नान के लिए चली गई। कथाओं के अनुसार स्नान के दौरान देवी पार्वती के शरीर से एक काले रंग की देवी प्रकट हुई। जिसके उनके शरीर से निकलने के बाद माता पार्वती पहले की तरह गोरे रंग वाली हो गई। और काले रंग की देवी कौशिकी के नाम से जग में विख्यात हुई। ऐसी कहा जाता है देवी पार्वती को गौरी कहा जाने का एक कारण ये भी था। स्नान आदि के बाद जब देवी उसी तपोस्थली पर पहुंची तो, उन्होंने देखा कि शेर वहीं बैठा है। जिसे देखकर देवी अधिक प्रसन्न हुई। और उसे अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया और उस पर सवार हो गई। जिससे बाद इन्हें शेरांवाली माता कहा जाने लगा। 
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