Somwar Pradosh Vrat Katha: भोलेनाथ की कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए पढ़ें, सोमवार प्रदोष व्रत की कथा

Edited By Updated: 17 Nov, 2025 08:55 AM

somwar pradosh vrat katha

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है और जब यह व्रत सोमवार को पड़ता है, तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है।

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Somwar Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है और जब यह व्रत सोमवार को पड़ता है, तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। आज यानी 17 नवंबर के दिन सोम प्रदोष का व्रत रखा जाएगा। माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा करने और व्रत रखने से जीवन में आने वाली हर परेशानी से छुटकारा मिलता है। साथ ही प्रदोष काल में सच्चे मन से व्रत और कथा का पाठ करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। तो आइए जानते हैं प्रदोष काल की कथा के बारे में-

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Somwar Pradosh Vrat Katha सोमवार प्रदोष व्रत कथा
एक बार की बात है, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का निधन हो चुका था, इसलिए घर में सहारा देने वाला कोई नहीं था। रोज़ सुबह वह अपने छोटे बेटे का हाथ पकड़कर भीख मांगने निकल जाती थी और जो कुछ मिलता, उसी से दोनों का गुज़ारा चलता था। एक दिन जब ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ वापस लौट रही थी, तो रास्ते में उसे एक लड़का बुरी तरह घायल पड़ा मिला। दया आकर वह उसे अपने घर ले आई। धीरे-धीरे पता चला कि वह लड़का विदर्भ प्रदेश का राजकुमार है। उसके राज्य पर दुश्मनों ने हमला किया था, राजा जो उसका पिता था को बंदी बना लिया गया था और इसी कारण वह बेचारा जीवन बचाने के लिए यहां-वहां भटक रहा था।

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राजकुमार कुछ समय तक उसी ब्राह्मणी के घर में रहने लगा। इसी दौरान, अंशुमति नाम की एक गंधर्व कन्या ने उसे देखा और उसके मन में राजकुमार के लिए प्रेम पैदा हो गया। अगले ही दिन वह अपने माता-पिता को भी राजकुमार से मिलाने ले आई। परिवार ने भी राजकुमार के गुण देखकर उसे स्वीकार कर लिया। उसी रात शिव भगवान ने अंशुमति के माता-पिता को स्वप्न में संदेश दिया कि दोनों का विवाह कर देना चाहिए। आदेश मिलने पर उन्होंने वैसा ही किया और राजकुमार व अंशुमति का शुभ विवाह संपन्न हुआ। उधर ब्राह्मणी निरंतर प्रदोष व्रत का पालन करती थी। उसी व्रत के पुण्य और गंधर्वराज की सेना की मदद से राजकुमार ने अपने दुश्मनों को हरा दिया और खोया हुआ राज्य वापस पा लिया। विदर्भ प्रदेश का राजकुमार जब राजकाज संभालने लगा तो उसने ब्राह्मणी के बेटे को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। कथा का सार यही है कि जैसे प्रदोष व्रत के प्रभाव से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र की किस्मत बदली, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के जीवन से संकट दूर कर उनके अच्छे दिन लौटाते हैं।

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