Edited By Jyoti,Updated: 15 Dec, 2021 05:21 PM
अनुवाद : संजय ने कहा : इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन कृष्ण से बोला, हे गोविन्द। मैं युद्ध नहीं करूंगा, और चुप हो गया।
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
अर्जुन शोक से निवृत्त हो जाएगा
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप:।
न योत्स्या इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव हा।।
अनुवाद : संजय ने कहा : इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन कृष्ण से बोला, हे गोविन्द। मैं युद्ध नहीं करूंगा, और चुप हो गया।
तात्पर्य: धृतराष्ट्र को यह जानकर परम प्रसन्नता हुई होगी कि अर्जुन युद्ध न करके युद्धभूमि छोड़कर भिक्षाटन करने जा रहा है। किन्तु संजय ने उसे पुन: यह कह कर विराम कर दिया कि अर्जुन अपने शत्रुओं को मारने में सक्षम है (परन्तप)। यद्यपि कुछ समय के लिए अर्जुन अपने पारिवारिक स्नेह के प्रति मिथ्या शोक से अभिभूत था, किन्तु उसने शिष्य रूप में अपने गुरु श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण कर ली।
इससे सूचित होता है कि शीघ्र ही वह इस शोक से निवृत्त हो आएगा और आत्म-साक्षात्कार या कृष्णभावना के पूर्ण ज्ञान से प्रकाशित होकर पुन: युद्ध करेगा। इस तरह धृतराष्ट्र का हर्ष भंग हो जाएगा। (क्रमश:)