Story of Shaligram Stones: कुछ ऐसी थी करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाओं की कहानी...

Edited By Updated: 23 May, 2025 02:05 PM

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Story of Shaligram Stones: अयोध्या में राम मंदिर के लिए नेपाल से करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं लाई गई थीं। इनको नेपाल के पोखरा से 50 किलोमीटर दूर गंडकी नदी से लाया गया। नेपाल के मुस्तांग जिले में मुक्तिनाथ के करीब एक स्थान पर गंडकी नदी में...

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Story of Shaligram Stones: अयोध्या में राम मंदिर के लिए नेपाल से करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं लाई गई थीं। इनको नेपाल के पोखरा से 50 किलोमीटर दूर गंडकी नदी से लाया गया। नेपाल के मुस्तांग जिले में मुक्तिनाथ के करीब एक स्थान पर गंडकी नदी में पाई गई 6 करोड़ वर्ष पुरानी विशेष चट्टानों से पत्थरों के 2 बड़े टुकड़े अयोध्या भेजे गए थे। जिस काली गंडकी नदी के किनारे से ये पत्थर लिए गए वह नेपाल की पवित्र नदी है। यह नदी दामोदर कुंड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। बताया जाता है कि दुनिया की यह अकेली ऐसी नदी है, जिसमें शालिग्राम पत्थर पाए जाते हैं। इन शालिग्राम की आयु करोड़ों साल की होती है। धार्मिक मान्यता है कि शालिग्राम पत्थर बेहद चमत्कारी है। कहते हैं कि जहां शालिग्राम की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है।

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शालिग्राम शिला की पौराणिक कथा
वहीं गंडकी नदी की शालिग्राम शिला को लेकर पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान विष्णु ने वृंदा (तुलसी) के पति शंखचूड़ को मार दिया था। वृंदा को इस बात का पता चला तो उन्होंने विष्णु जी को पाषाण होकर धरती पर निवास करने का श्राप दिया। चूंकि वृंदा श्रीहरि की परम भक्त थी, तुलसी की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने कहा कि तुम गंडकी नदी के रूप में जानी जाओगी और मैं शालिग्राम बनकर इस नदी के पास वास करूंगा।

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कहते हैं कि गंडकी नदी में जो शालिग्राम शिलाएं हैं उन पर चक्र, गदा के चिन्ह पाए जाते हैं। हिंदू धर्म में शालिग्राम का खास महत्व है। हिंदुओं में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की पूजा विभिन्न प्रकार से की जाती है। जैसे ब्रह्मा जी की पूजा शंख के रूप में और भगवान शिव की उपासना शिवलिंग के रूप में की जाती है, ठीक उसी तरह भगवान विष्णु की उपासना भगवान शालिग्राम के रूप में की जाती है। कहते हैं कि 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं। इनमें से कई को विष्णु जी के 24 अवतारों से जोड़ा गया है।

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विष्णु जी के गोपाल रूप में गोलाकार शालिग्राम की पूजा होती है। मछली के आकार के शालिग्राम को मत्स्य अवतार का रूप माना जाता है। कछुए के आकार को कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। जिन शालिग्राम में रेखाएं होती हैं, उन्हें श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है।

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मां लक्ष्मी का मिलता है आशीर्वाद
शालिग्राम स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्तजन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं।

शालिग्राम शिला को अलौकिक माना गया है। कहते हैं कि जिस घर या मंदिर में शालिग्राम विराजते हैं, वहां के भक्तों पर मां लक्ष्मी मेहरबान रहती हैं, साथ ही वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।

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