सूर्य की किरणों से होता है रोगों का नाश, पीड़ित व्यक्ति एक बार अवश्य आजमाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Nov, 2017 01:00 PM

surya special story

ब्रह्मपुराण में भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन महर्षियों द्वारा विधाता ब्रह्मा जी से पूछने पर उन्होंने इस प्रकार किया है- भगवान सूर्य सबकी आत्मा, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वर, देवताओं के भी देवता और प्रजापति हैं। सूर्य से वृष्टि होती है। ऋषियों ने पूछा,...

ब्रह्मपुराण में भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन महर्षियों द्वारा विधाता ब्रह्मा जी से पूछने पर उन्होंने इस प्रकार किया है- भगवान सूर्य सबकी आत्मा, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वर, देवताओं के भी देवता और प्रजापति हैं। सूर्य से वृष्टि होती है। ऋषियों ने पूछा, ‘‘हे परम पिता परमेश्वर भगवान सूर्य को आपने निर्गुण एवं सनातन देवता बतलाया है, फिर आपके मुख से हमने यह भी सुना है कि वह बारह स्वरूपों में प्रकट हुए। वह तेज की राशि और महान तेजस्वी होकर किसी स्त्री के गर्भ से कैसे प्रकट हुए, कृपा कर हमारा संदेह दूर करें।’’


तब ब्रह्मा जी ने बताया कि प्रजापति दक्ष की साठ कन्याएं उत्पन्न हुईं, जो श्रेष्ठ और सुंदर थीं। उनमें से तेरह कन्याओं का विवाह दक्ष ने कश्यप जी से किया। अदिति ने तीनों लोकों के स्वामी देवताओं को जन्म दिया। दिति से दैत्य उत्पन्न हुए। इन दक्ष संतानों से ही यह जगत व्याप्त है। कश्यप के पुत्रों में देवता प्रधान हैं। वे सात्विक और यज्ञ के भागी भी हैं। दैत्य आदि तामस हैं अत: वे मिलकर उन्हें कष्ट पहुंचाने लगे। जब माता अदिति ने देखा कि दैत्य और दानवों ने उनके पुत्रों को उनके स्थान से हटा दिया है तब वह निराकार परब्रह्म तेजाकार पिंडस्वरूप सूर्य की कृपा प्राप्ति के लिए कठोर तप कर उनकी नित्य वंदना करने लगीं।


इस प्रकार बहुत दिनों तक आराधना करने पर भगवान सूर्य ने दक्ष कन्या अदिति को अपने तेजोमय स्वरूप के प्रत्यक्ष दर्शन दिए। तब अदिति बोलीं, ‘‘हे सूर्य देव मैं आपको भली-भांति देख नहीं पा रही, आप ऐसी कृपा करें जिससे मैं आपके प्रत्यक्ष दर्शन कर सकूं। भास्कर सूर्य ने अदिति को शांतरूप में कहा, ‘‘हे देवी आप अपनी इच्छानुसार कोई वर मांग लें।’’ 


अदिति बोलीं, ‘‘हे देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो अपने अंश से मेरे पुत्रों के भाई होकर उनके शत्रुओं का नाश करें।’’


भगवान भास्कर तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। तत्पश्चात वर्ष के अंत में देव माता अदिति की इच्छा पूर्ण करने हेतु भगवान सूर्य ने उनके गर्भ में निवास किया। उस समय देवी अदिति यह सोचकर कि मैं पवित्रता पूर्वक ही इस दिव्य गर्भ को धारण करूंगी, एकाग्रचित होकर कुछ चान्द्रायण व्रतों का पालन करने लगी।


उनका यह कठोर नियम देखकर कश्यप ने कुपित होकर कहा, ‘‘तू नित्य उपवास करके गर्भ के बच्चे को क्यों मार डालना चाहती है?’’ 


अदिति रूष्ट होकर बोलीं, ‘‘देखिए यह रहा गर्भ का बच्चा, मैंने इसे मारा नहीं है। यह अपने शत्रुओं को मार डालने वाला होगा।’’ 


यह कर देवमाता अदिति ने उसी समय गर्भ का प्रसव किया। वह उदयकालीन सूर्य के समान तेजस्वी अंडाकार गर्भ सहसा प्रकाशित हो उठा। उसे देखकर महर्षि कश्यप ने वैदिक वाणी के द्वारा आदरपूर्वक उसका स्तवन किया। स्तुति करने पर उस गर्भ से शिशु प्रकट हो गया। तभी आकाशवाणी हुई, ‘‘हे मुने! तुमने अदिति से कहा था तूने गर्भ के बच्चे को मार डाला इसलिए तुम्हारा पुत्र मार्तण्ड के नाम से प्रसिद्ध होगा और असुरों का संहार करेगा।’’


देवताओं और असुरों के युद्ध के समय मार्तंड ने जब दैत्यों की तरफ देखा तो वे जलकर भस्म हो गए। देवताओं ने अदिति और मार्तण्ड का स्तवन किया। देवताओं को पूर्ववत अपने अधिकार और यज्ञ भाग की प्राप्ति हुई।


मानव जीवन में सूर्योपासना का विशिष्ट महत्व है। इसका प्रमुख कारण है कि सौरमंडल में सूर्य-चंद्रादि नवग्रह, त्रिदेव, मरुद्गण, साध्यदेव, सप्तर्षि गण एवं तैंतीस करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं। इन समस्त देवाओं का प्रतिनिधित्व सूर्य एवं चंद्र द्वारा होता है। तेजोनिधान भगवान भुवन भास्कर ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अचिन्त्य शक्तियों के प्रमुख संचालक हैं।


ऋग्वेद की संहिता ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्तुषश्च’ कह कर जंगम तथा स्थावर प्राणियों की आत्मा भगवान सूर्य को ही स्वीकार किया गया। श्रीमद्भागवत में वर्णन मिलता है कि सूर्य के द्वारा ही दिशा, आकाश, द्यूलोक, भूलोक, स्वर्णमोक्ष के प्रदेश, नरक और रसातल तथा अन्य समस्त स्थानों का विभाग होता है। सूर्य ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और लता-वृक्षादि समस्त जीव समूहों के आत्मा एवं नेत्रेन्द्रिय के अधिष्ठाता हैं।


आधुनिक प्रकाश सिद्धांत से हजारों वर्ष पूर्व वेदों में सूर्य की सात रंग की किरणें बताई गई हैं। सूर्योदय के समय की किरणें विभिन्न प्रकार के रोगों का नाश करती हैं। सूर्य की रश्मियों में रहने को अमृत लोक में रहने के समान माना है। सूर्य की रश्मियों के इन गुणों के कारण क्रोकोपैथी नामक चिकित्सा का विकास हुआ है। सूर्य से हृदय रोग, रक्तालप्ता, सिर में समस्त रोग, कर्णशूल, नेत्र रोग, पीलिया, उदर रोग, अस्थि रोग, गलने और सडऩे वाले रोग इत्यादि रोग दूर होते हैं। सूर्य ताप को औषधि माना गया है। सूर्य का प्रभाव सभी राशियों में भाव के अनुसार अवश्य होता है।


सूर्य से पीड़ित जातक को माणिक्य रत्न विधिपूर्वक धारण करना चाहिए। माणिक्य रत्न रविवार को धारण करना चाहिए। सूर्य यंत्र की साधना करने से भी पीड़ित व्यक्ति को लाभ पहुंचता है।

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