स्वामी प्रभुपाद: आत्म साक्षात्कार का अर्थ है भगवान के संबंध में अपने स्वरूप को जानना
Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Jun, 2024 09:25 AM
इस प्रकार योगाभ्यास में निरंतर लगे रह कर आत्मसंयमी योगी समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है और भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है।
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युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः:।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते॥6.28॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : इस प्रकार योगाभ्यास में निरंतर लगे रह कर आत्मसंयमी योगी समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है और भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है।
आत्म साक्षात्कार का अर्थ है भगवान के संबंध में अपने स्वरूप को जानना। जीव (आत्मा) भगवान का अंश है और उसका स्वरूप भगवान की दिव्य सेवा करते रहना है। ब्रह्म के साथ यह दिव्य सान्निध्य ही ब्रह्म-संस्पर्श कहलाता है।