Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Feb, 2024 07:54 AM
स्वामी रामतीर्थ जब सैन फ्रान्सिस्को में थे, तब ‘एनी’ नामक एक महिला उनके पास आई और हृदयविदारक क्रंदन करती हुई बोली, ‘‘प्रभो मैं बहुत दुखी हूं। मेरा बच्चा जानलेवा बुखार से चल बसा है, कृपया उसे वापस दिला दें।’’
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Swami Ramtirth teachings: स्वामी रामतीर्थ जब सैन फ्रान्सिस्को में थे, तब ‘एनी’ नामक एक महिला उनके पास आई और हृदयविदारक क्रंदन करती हुई बोली, ‘‘प्रभो मैं बहुत दुखी हूं। मेरा बच्चा जानलेवा बुखार से चल बसा है, कृपया उसे वापस दिला दें।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘माता मैं तुम्हारा बच्चा तुम्हें वापस ला दूंगा। साथ ही तुम्हारा दुख दूर करने के लिए आनंद का मंत्र भी दूंगा, किन्तु तुम्हें उसके लिए कीमत चुकानी होगी।’’
आवेश में वह दुखियारी बोली, ‘‘स्वामी जी, मेरे बच्चे के लिए चाहे जितनी भी कीमत चुकानी पड़े, मैं पीछे नहीं हटूंगी। मेरे पास धन-दौलत की कमी नहीं, आप जो मांगें मैं दूंगी।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘राम के परमानंद साम्राज्य में इस दौलत की कुछ कीमत नहीं। राम इससे भी बड़ी कीमत मांगता है।’’
‘‘स्वामी जी मैं हर कीमत पर आनंद प्राप्त करना चाहती हूं।’’ वह स्त्री बोली।
‘‘तो फिर राम के साम्राज्य में आनंद का अभाव ही कहां ?’’
कहते हुए स्वामी जी उसे एक अत्यंत निर्धन बस्ती में ले गए और एक अनाथ हब्शी बालक का हाथ पकड़कर कहा, ‘‘यह रहा तुम्हारा बच्चा। माता इसे गोद ले लो। वह स्वयं राम का आत्म स्वरूप है। इसे पुत्रवत पालना। तू इससे जितना लाड़ करेगी, तेरे सुख का दरिया उतना ही उमड़-उमड़ कर बहेगा।’’
स्वामी जी के इन शब्दों में विश्व में समस्त उपेक्षितों, मातृहीनों एवं भूखों को अपने आलिंगन में समेट लेने वाला स्नेह बरस रहा था। उनके मुख पर ईस्वरीय आभा खेल रही थी। पराए दुख-दर्द को अपनाकर उसमें अपना खोया आनंद धन पा लेने का गुरुमंत्र ऐनी के हाथ लग गया। उसके गोरेपन का गर्व गल गया।
उच्चतम के अभिमान की दीवार ढह गई। उस धूल-धूसरित हब्शी बालक को उसने अपनी कोख से जन्मे बच्चे की तरह छाती से चिपका लिया। उसका श्मशान सदृश घर फिर निश्छल हास्य की किलकारियों से गूंज उठा।