Edited By Prachi Sharma,Updated: 21 Oct, 2025 06:54 AM

Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जो माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के दिव्य विवाह का प्रतीक है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे हिंदू पंचांग में चातुर्मास की...
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Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जो माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के दिव्य विवाह का प्रतीक है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे हिंदू पंचांग में चातुर्मास की समाप्ति और सभी प्रकार के शुभ एवं मांगलिक कार्यों के पुनः आरंभ का संकेत माना जाता है।
Tulsi Vivah तुलसी विवाह 2025
तुलसी विवाह की तिथि- रविवार, 02 नवंबर 2025
द्वादशी तिथि प्रारंभ- 2 नवंबर 2025 को सुबह 07 बजकर 31 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्त- 3 नवंबर 2025 को सुबह 05 बजकर 07 मिनट पर
Tulsi Vivah Significance तुलसी विवाह का महत्व
चातुर्मास के दौरान विवाह आदि शुभ कार्य वर्जित होते हैं। तुलसी विवाह के साथ ही इन शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।
जो भक्त तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं और विधि-विधान से तुलसी जी का कन्यादान करते हैं, उन्हें महादान का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
यह विवाह दांपत्य जीवन में सौभाग्य, सुख-समृद्धि और शांति लाता है। जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही हो, वे भी इस व्रत को करते हैं।
तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी प्रकार के दोष और बाधाएं दूर होती हैं।

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा का विवाह जालंधर नामक एक शक्तिशाली असुर से हुआ था। वृंदा अपने पतिव्रता धर्म के कारण बहुत पवित्र थीं, जिसके चलते जालंधर अजेय हो गया था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। देवताओं की विनती पर, भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के साथ छल किया, जिससे उनका सतीत्व भंग हो गया। सतीत्व भंग होते ही जालंधर कमजोर पड़ गया और शिव जी ने उसका वध कर दिया।
वृंदा ने जब भगवान विष्णु को पहचाना, तो उन्हें शालिग्राम बनने का शाप दिया और स्वयं तुलसी के पौधे के रूप में जन्म लिया। वृंदा के इस त्याग से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि उनका विवाह हर साल उनके शालिग्राम स्वरूप के साथ होगा। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
