आपकी जन्मपत्रिका में पुत्र योग है या नहीं, जानें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 12:18 PM

whether or not you have son yoges in your birth chart

शुक्रेन्दुवर्गे:सुतभे विलग्राच्छुक्रेण चन्द्रेण युतेस्थ दृष्टे। पापैरयुक्ते बहुपुत्रशाली शन्यार दृष्टेसति पुत्र हीन:।। अर्थात : यदि पंचम भाव शुक्र या चंद्र वर्ण हो, या इस पर शुक्र की दृष्टि एवं चंद्र की दृष्टि हो और इसमें पाप ग्रह नहीं बैठे हों तो...

शुक्रेन्दुवर्गे:सुतभे विलग्राच्छुक्रेण चन्द्रेण युतेस्थ दृष्टे। पापैरयुक्ते बहुपुत्रशाली शन्यार दृष्टेसति पुत्र हीन:।।
अर्थात :
यदि पंचम भाव शुक्र या चंद्र वर्ण हो, या इस पर शुक्र की दृष्टि एवं चंद्र की दृष्टि हो और इसमें पाप ग्रह नहीं बैठे हों तो उस मनुष्य को बहुत संतान सुख योग होता है। यदि शुक्र और चंद्र की जगह शनि, मंगल का पूर्ववत् योग हो तो वह मनुष्य संतानहीन होता है। इसके लिए हरिवंश पुराण का पठन एवं उसमें प्रदत्त संतान अनुष्ठान का प्रयोग ग्रह शांति सहित कराएं।


पुत्रस्थे मदनाधिके वितनयो जायाविहीनो  थवा, पुत्रादष्ट मश शत्रुरि: गृहगा:पापा:कुलह वंसका:। राहौ नंदनराशिजे तद्धिपे दु:स्धानगे पुत्रहा, पुत्रस्थे तनुपेतनौ सुतपतौ गृहाति दत्तात्मजम्।।
अर्थात :
यदि लग्न से सप्तमेश पंचम में बैठा हो तो मनुष्य स्त्रीहीन या पुत्र रहित होगा। यदि पंचम भाव में राहू  हो तो या पंचमेश 6, 8 व 12वें घर में बैठा हो तो ‘मृतवत्सा’ योग होता है। यदि लग्नेश पंचम भाव में और पंचमेश लग्न में हो तो दत्तक पुत्र (गोद) का योग होता है। इसमें शुक्र ग्रह की शांति करानी चाहिए।


दशमें शीतगुद्र्युने भृगुभे पापिन: सुखे। तस्य सन्तति विच्छेदों भविष्यति न संशय।।
अर्थात :
यदि कुंडली में लग्न से दसवें घर में चंद्रमा, सातवें शुक्र और पाप ग्रह चौथे घर में बैठे हों तो उसे संतान विच्छेद योग होता है। यानि संतान सुख से वंचित रहना पड़ता है। 

 

उपाय-गोपाल सहस्त्र नाम का अनुष्ठान तथा संतान गोपाल स्तवन का अनुष्ठान दम्पत्ति विधि विधान से करें, तथा ग्रहों का दान पुण्य करें तो काम में सफलता का योग बनता है।


षष्ठाष्टमस्थो लग्नेश: पापयुक्त: सुताधिप:। दृष्टों वा शत्रुनीचस्थै: पुत्र हानि वदेद्रुध:।।
अर्थात :
यदि लग्नेश छठे या आठवें में बैठा हो, पंचमेश पापग्रह युक्त हो, या शत्रु दृश्य हो तो मतृवत्सा योग होता है। कुलमाता की साधना का उपाय सार्थक होता है तथा राम रक्षा कवच को धारण किया जाना चाहिए।


लग्न सप्तम धर्मा, त्याराशिगा: पाप रवेचरा:। सपत्नराशिवर्गस्था वंश विच्छेद कारिया :।
अर्थात :
यदि पाप ग्रह 1, 7, 4 व 12वें भाव में बैठे हों और वे शत्रु क्षेत्र के हों तो वंश विच्छेद योग बनता है।


उपाय : हरिवंश पुराण का अनुष्ठान कराएं।


पुत्र प्राप्ति का समय जानना : लग्नेश, पंचमेश के राशि अंकों को जोडऩे से जो राशि अंक बने उस पर जब गुरु ग्रह आए तो पुत्रोत्पत्ति का समय बनता है।


दत्तकपुत्र योग: पुत्र स्थाने बुध क्षेत्रे मंद होतेयषा यदि। मंदिमान्दपुते दृष्टे तदा दत्ताद्य: सुता:।।
अर्थात :
पंचम भाव बुध या शनि की राशि का हो (3, 6, 10, 11) बुध शनि से युक्त या दृष्ट हो तो दत्तक पुत्र योग बनता है।
उपाय : पुत्र प्राप्ति, धर्म करने से होती है। बुध, शुक्र और चंद्रमा प्रति बंधक हों तो शिवजी का अभिषेक कराना चाहिए। बृहस्पति प्रतिबंधक हो तो मंत्र-तंत्र औषधि प्रयोग से कष्ट निवारण जानना चाहिए। शनि-राहू-केतु बाधक होने पर कुल देवता तथा संतान गोपाल की आराधना करनी चाहिए। 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!