क्यों काशी से गंगाजल घर लाने की है मनाही? जानें धार्मिक मान्यता

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 07:37 AM

गंगाजल का हमारे जीवन और धार्मिक परंपराओं में अत्यंत पवित्र स्थान है। कहा जाता है कि गंगा का एक बूंद भी सभी पापों को धो देती है और आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करती है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Why Ganga Jal Should Not Be Taken from Kashi: गंगाजल का हमारे जीवन और धार्मिक परंपराओं में अत्यंत पवित्र स्थान है। कहा जाता है कि गंगा का एक बूंद भी सभी पापों को धो देती है और आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करती है। इसी कारण लोग हर शुभ कार्य, पूजा-पाठ, यज्ञ या विवाह संस्कार में गंगाजल का प्रयोग अवश्य करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जहां एक ओर गंगाजल को अमृत के समान पवित्र माना गया है, वहीं दूसरी ओर काशी या बनारस जिसे शिव की नगरी भी कहते हैं और मोक्ष की नगरी भी कहते हैं, वहां से गंगाजल लाना अशुभ माना गया है? यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन शास्त्रों और लोक मान्यताओं में इसके पीछे गहरा रहस्य छिपा हुआ है। कहा जाता है कि बनारस की गंगा मोक्षदायिनी तो है, परंतु वहां से गंगाजल घर लाना कुछ विशेष कारणों से वर्जित बताया गया है। इतना ही नहीं वहां से गीली मिट्टी लाने की भी मनाही है। तो आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों है और इसके पीछे का कारण क्या है। 

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प्राचीन काल से ही बनारस को शिव की नगरी और मोक्ष की नगरी कहा जाता है। यहां कई  जीव जंतु और मानव आकर अपने प्राण त्यागते है। यहां कई ऐसे आश्रम बने हुए हैं जहां लोग अपने जीवन के अंतिम चरण में आते हैं और मृत्यु तक वहीं ठहरते हैं। कहा जाता है कि इस पवित्र भूमि पर आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मणिकर्णिका घाट, जो बनारस के प्रमुख घाटों में से एक है। यहां  प्रतिदिन अनेक अंतिम संस्कार किए जाते हैं। ये घाट हर रोज़ कई संस्कारों का साक्षी बनता है और मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग काशी से गंगाजल अपने साथ लेकर जाते हैं, वे अनजाने में उस जल में मौजूद सूक्ष्म जीवों को भी अपने साथ ले जाते हैं। मान्यता के अनुसार, इन जीवों का काशी की पवित्र भूमि और गंगा जल से गहरा संबंध होता है, जहां उन्हें मोक्ष प्राप्त करने का अधिकार मिलता है। इसलिए यह माना जाता है कि काशी से किसी भी जीव को उसके स्थान से अलग करना उसके मोक्ष मार्ग में बाधा डालता है, जो एक गंभीर पाप माना गया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जो व्यक्ति किसी अन्य को काशी आने के लिए प्रेरित करता है, उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं, जो किसी को इस पवित्र नगरी से दूर करता है या यहां आने से रोकता है, वह पाप का भागी बनता है।

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मान्यताओं के अनुसार ये नियम पूरे बनारस की मिट्टी, विशेष रूप से गंगाजल से मिली हुई गीली मिट्टी पर भी लागू होता है। काशी से गंगाजल न लाने की परंपरा के पीछे एक और कारण यह है कि यहां दाह संस्कार के बाद मृतकों की राख गंगा में प्रवाहित की जाती है। ऐसे में गंगाजल में उन अवशेषों या सूक्ष्म अंशों का मिलना स्वाभाविक है। माना जाता है कि इस जल को बाहर ले जाने से उन आत्माओं की मोक्ष प्राप्ति की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा यहां पर कई प्रकार के तांत्रिक अनुष्ठान आदि कर्म भी किए जाते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि इस स्थान से गंगाजल को घर लाने से फायदें की जगह नकारात्मक परिणाम का सामना करना पड़ सकता है।

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