श्री मल्लिकार्जुन: ‘दक्षिण का कैलाश’ जानें, इसके स्थापत्य की कहानी और महत्ता

Edited By Updated: 10 Jul, 2016 11:25 AM

shri mallikarjun mandir

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत को ‘दक्षिण का कैलाश’ कहा जाता है। महाभारत, शिव पुराण

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत को ‘दक्षिण का कैलाश’ कहा जाता है। महाभारत, शिव पुराण और पद्म पुराण आदि धर्मग्रंथों में इसकी महिमा और महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है।

 

पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार बताई गई है-एक बार की बात है, भगवान शंकर जी के दोनों पुत्र श्री गणेश और श्री स्वामी कार्तिकेय विवाह के लिए परस्पर झगडऩे लगे। प्रत्येक का आग्रह था कि पहले मेरा विवाह किया जाए। उन्हें लड़ते-झगड़ते देखकर भगवान शंकर और मां पार्वती ने कहा, ‘‘तुम दोनों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा, उसी का विवाह पहले किया जाएगा।’’ 

 

माता-पिता की यह बात सुनकर श्री स्वामी कार्तिकेय तो तुरंत पृथ्वी-प्रदक्षिणा के लिए दौड़ पड़े लेकिन गणेश जी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था क्योंकि एक तो उनकी काया स्थूल थी, दूसरे उनका वाहन भी मूषक (चूहा) था। भला वह दौड़ में स्वामी कार्तिकेय की समता किस प्रकार कर पाते? लेकिन उनकी काया जितनी स्थूल थी, बुद्धि उसी के अनुपात में सूक्ष्म और तीक्ष्ण थी। उन्होंने अविलंब पृथ्वी की परिक्रमा का एक सुगम उपाय खोज निकाला।

 

सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात उनकी सात प्रदक्षिणाएं करके उन्होंने पृथ्वी-प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया। उनका यह कार्य शास्त्रानुमोदित था।

पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर स्वामी कार्तिकेय जब तक लौटे, तब तक गणेश जी का दो कन्याओं के साथ विवाह हो चुका था और उन्हें ‘क्षेम’ तथा ‘लाभ’ नामक दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे। यह सब देखकर स्वामी कार्तिकेय अत्यंत रुष्ट होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचीं। पीछे से शंकर भगवान भी वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तब से मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात हुए। इनकी अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका-पुष्पों से की गई थी। मल्लिकार्जुन  नाम पडऩे का यही कारण है।

 

एक दूसरी कथा यह भी कही जाती है कि इस शैल पर्वत के निकट किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी थी। किसी विपत्ति विशेष के निवारणार्थ उनकी एक कन्या महल से निकल कर इस पर्वतराज के आश्रम में आकर यहां के गोपों के साथ रहने लगी। उस कन्या के पास एक बड़ी ही शुभ लक्षणा सुंदर श्यामा गाय थी। उसका दूध रात में कोई दुह ले जाता था। एक दिन संयोगवश उस राज कन्या ने चोर को दूध दोहते देख लिया और क्रुद्ध होकर उस चोर की ओर दौड़ी, किंतु गाय के पास पहुंचकर उसने देखा कि वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। राजकुमारी ने कुछ काल पश्चात उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है। 

 

इस मल्लिकार्जुन-शिवलिंग और तीर्थ क्षेत्र की पुराणों में अत्यधिक महिमा बताई गई है। यहां आकर शिवलिंग का दर्शन-पूजन-अर्चन करने वाले भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। उनकी भगवान शिव के चरणों में स्थिर प्रीति हो जाती है। दैहिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से वे मुक्त हो जाते हैं। भगवान शिव की भक्ति मनुष्य को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने वाली है।

—प्रेम वर्मा

 

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