कोरोना में खतरनाक साबित हो सकती है हर्ड इम्यूनिटी, वैक्सीन पर ही करना पड़ेगा भरोसा

Edited By Tanuja,Updated: 06 May, 2020 04:45 PM

is herd immunity best weapon against covid 19

दुनियाभर में कहर मचा रहे किलर कोरोना वायरस  की रोकथाम और इलाज के लिए वैज्ञानिकों व डाक्टरों द्वारा नित नए तरीकों की तेजी से खोज की...

वॉशिंगटनः दुनियाभर में कहर मचा रहे किलर कोरोना वायरस  की रोकथाम और इलाज के लिए वैज्ञानिकों व डाक्टरों द्वारा नित नए तरीकों की तेजी से खोज की जा रही है। बड़ी संख्या में  एक्सपर्ट्स 'सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि हर्ड इम्यूनिटी' की थ्योरी पर भी जोर दे रहे हैं।  हालांकि कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह तरीका प्रभावी नहीं बल्कि खतरनाक साबित हो सकता है। । भारत में भी जिस तरह से ग्रीन जोन्स में नियमों में ढील दी जा रही है, कहा जा रहा है कि यहां भी  हर्ड इम्यूनिटी का टेस्ट हो रहा है।

 

अमेरिका के मैरीलैंड के डॉक्टर फहीम यूनुस ने बताया है कि क्यों हर्ड इम्यूनिटी खतरनाक हो सकती है। डॉ. फहीम का कहना है कि अगर देश की दो तिहाई आबादी को इन्फेक्ट किया गया तो यह संख्या 20 करोड़ पहुंच जाएगी। इनमें से अगर 1 प्रतिशत लोगों की भी मौत हुई तो यह आंकड़ा  20 लाख हो जाएगा। अगर 15 % लोग गंभीर हालात में पहुंच गए तो यह 3 करोड़ हो जाएगा। अमेरिका के बारे में जताई गई यह आशंका भारत की आबादी को देखते हुए  बेहद खतरनाक  मालूम पड़ती है।

 

वैक्सीन ही बेहतर विकल्प 
डॉक्टर फहीम का कहना है कि लोगों को को हर्ड इम्यूनिटी के बजाय वैक्सीन के लिए इंतजार करना चाहिए। म्यूटेशन की स्थिति में वैक्सीन कितनी असरदार होगी।  डॉक्टर फहीम ने साफ किया कि म्यूटेशन के बावजूद ऐसी संभावना है कि 2021 तक COVID-19 के लिए एक से ज्यादा वैक्सीन बना ली जाएंगी। 100 से ज्यादा और 4 अलग-अलग टाइप की वैक्सीनों पर रिसर्च की जा रही है और काफी संभावना है कि सफलता मिल जाएगी। फहीम ने यह भी कहा कि ज्यादातर म्यूटेशन्स का कोई असर नहीं होता है।

 

जानें क्या है हर्ड इम्युनिटी?
हर्ड इम्यूनिटी मेडिकल साइंस का एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है। इसके तहत देश की आबादी का एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित कर दिया जाता है ताकि वो इस वायरस से इम्यून हो जाएं। यानी उनके शरीर में वायरस को लेकर एंटीबॉडीज बन जाएं। इससे भविष्य में कभी भी वो वायरस परेशान नहीं करेगा। इसे लागू करने की योजना पर ब्रिटेन ने विचार भी किया था लेकिन बाद में  फैसला बदल दिया गया। अगर ब्रिटेन में  हर्ड इम्यूनिटी सिस्टम को लागू किया जाता तो यूनाइटेड किंगडम की 60 फीसदी आबादी को कोरोना वायरस से संक्रमित किया जाता। इसके बाद जब वे इस बीमारी से इम्यून हो जाते तब उनके शरीर से एंटीबॉडीज निकाल कर इस वायरस के लिए वैक्सीन तैयार किया जाता। फिर इसी वैक्सीन से बाकी लोगों का इलाज किया जाता।

 

हर्ड इम्यूनिटी कैसे करती है काम
हर्ड इम्यूनिटी की प्रक्रिया लागू करने से यह भी पता चल जाता कि देश की कितनी बड़ी आबादी इससे प्रभावित हो रही है। साथ ही इस वायरस की फैलने की क्षमता कितनी है। यानी अगर एक व्यक्ति को संक्रमित किया जाता वायरस से तो उस आदमी से और कितने लोग संक्रमित हो रहे हैं। जैसे मीसल्स से बीमार एक व्यक्ति करीब 12 से 18 लोगों को संक्रमित कर सकता है। इनफ्लूएंजा से पीड़ित आदमी 1 से 4 लोगों को बीमार कर सकता है। ये निर्भर करता है कि मौसम कैसा है, साथ ही वायरस जिस व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है, उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कितनी है। कोरोना वायरस एक आदमी से 2 या 3 लोगों को संक्रमित कर सकता है।

 

 कोरोना वायरस 3 तरीकों से करता है वार
वायरस तीन तरीके से बड़ी आबादी को संक्रमित करता है। पहला - वह समुदाय या समूह जो वायरस से इम्यून न हो यानी प्रतिरोधक क्षमता कम हो। दूसरा - ये हो सकता है कि कुछ लोग इम्यून हो लेकिन समुदाय में बाकी लोग इम्यून न हों। तीसरा - पूरे समुदाय को इम्यून कर दिया जाए ताकि जब वायरस फैलने की कोशिश करे तो वह इक्का-दुक्का लोगों को ही संक्रमित कर पाए। दुनिया में हर्ड इम्यूनिटी का सबसे बेहतरीन उदाहरण है पोलियो। दुनिया की लगभग पूरी आबादी पोलियो से इम्यून हो चुकी है। पोलियो को रोकने के लिए पूरी दुनिया में अभियान चला क्योंकि इसका वायरस 90 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता था।

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