भगवान महावीर जयंती: जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर की कुछ प्रासंगिक बातें

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2016 09:40 AM

mahavir jayanti

महावीर जयंती पर विशेष अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्त थे। वह सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को भी कोई दुख

महावीर जयंती पर विशेष
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्त थे। वह सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक एवं जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी दया के मूर्तमान प्रतीक थे। 
 
 
जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जात-पात के भेदभाव का बोलबाला था, उसी युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य एवं अहिंसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से मनुष्य का सही मार्गदर्शन किया। भगवान महावीर स्वामी ने हमें अहिंसा का पालन करते हुए, सत्य के पक्ष में रहते हुए, किसी के हक को मारे बिना, किसी को सताए बिना, अपनी मर्यादा में रहते हुए पवित्र मन से, लोभ-लालच किए बिना, नियम में बंध कर सुख-दुख में संयमभाव में रहते हुए, आकुल व्याकुल हुए बिना, धर्म संगत कार्य करते हुए ‘मोक्ष पद’ पाने की ओर कदम बढ़ाते हुए दुर्लभ जीवन को सार्थक बनाने का संदेश दिया। 
 
 
उन्होंने जो बोला सहज रूप से बोला, सरल एवं सुबोध शैली में बोला, सापेक्ष दृष्टि से स्पष्टीकरण करते हुए बोला। आपकी वाणी ने लोक हृदय को अपूर्व दिव्यता प्रदान की। आपका समवशरण जहां भी गया, वह कल्याण धाम हो गया।
 
 
भगवान महावीर ने प्राणीमात्र हितैषिता एवं उनके कल्याण की दृष्टि से धर्म की व्याख्या की। आपने कहा, ‘‘धम्मो मंगल मुक्किट्ंठ, अहिंसा संजमा तवो’’ (धर्म उत्कृष्ट मंगल है। वह अहिंसा, संयम तथा तप रूप है।) एक धर्म ही रक्षा करने वाला है। धर्म के सिवाय संसार में कोई भी मनुष्य का रक्षक नहीं है।
 
 
धर्म भावना से चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म से वृत्तियों का उन्नयन होता है। धर्म व्यक्ति के आचरण को पवित्र एवं शुद्ध बनाता है। धर्म से सृष्टि के प्रति करुणा एवं अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है इसीलिए भगवान महावीर जी ने कहा, ‘‘एगा धम्म पडिमा, जं से आयो पवज्जवजाए’’ अर्थात् धर्म ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है।
 
 
भगवान महावीर ने मानव भव दुर्लभता का वर्णन करते हुए गणधर गौतम से कहा था हे गौतम सब प्राणियों के लिए चिरकाल में मनुष्य जन्म दुर्लभ है क्योंकि कर्मों का आवरण अतीव गहन है अंतत: इस भाव को पाकर एक क्षण के लिए भी प्रमाद तथा आलस नहीं करना चाहिए। अनेक गतियों और योनियों में भटकते-भटकते जब जीव शुद्धि को प्राप्त करता है तब कहीं जाकर  मनुष्य योनि प्राप्त होती है।
 
 
भगवान महावीर का कहना था कि किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को नहीं पहचानना है तथा यह केवल आत्मज्ञान प्राप्त करके ही ठीक की जा सकती है।
 
 
मनुष्य को अपने जीवन में जो धारण करना चाहिए वही धर्म है। धारण करने योग्य क्या है? क्या हिंसा, क्रूरता, कठोरता, अपवित्रता, अहंकार, क्रोध, असत्य, असंयम, व्यभिचार, परिग्रह आदि विकार धारण करने योग्य हैं? यदि संसार का प्रत्येक व्यक्ति अहिंसा हो जाए तो समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा तथा सर्वत्र भय, अशांति एवं पाशविकता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
 
 
जैन धर्म इस बात में आस्था रखता है कि प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है अर्थात भगवान महावीर स्वामी की तरह ही प्रत्येक व्यक्ति जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करके उसमें सच्ची आस्था रख कर उसके अनुसार आचरण करके बड़े पुण्योदय से उसे प्राप्त कर दुर्लभ मानव योनि का एकमात्र सच्चा व अंतिम सुख, सम्पूर्ण जीवन जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होने वाले कर्म करते हुए मोक्ष महाफल पाने हेतु कदम बढ़ा कर तथा उसे प्राप्त कर वीर महावीर बन दुर्लभ जीवन को सार्थक कर सकता है।
 
 
महावीर जी ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। उन्होंने जो उपदेश दिए, गणधरों ने उनका संकलन किया। वे संकलन ही शास्त्र बन गए। इनमें काल, लोक, जीव आदि के भेद-प्रभेदों का इतना विशुद्ध एवं सूक्ष्म विवेचन है कि यह एक विश्व कोष का विषय नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं-प्रशाखाओं के अलग-अलग विश्व कोषों का समाहार है। आज के भौतिक युग में अशांत जन मानस को भगवान महावीर की पवित्र वाणी ही परम सुख और शांति प्रदान कर सकती है। यदि आज संसार के लोग भगवान महावीर के अहिंसा परमोधर्म, अपरिग्रह और अनेकांतवाद को अपना लें तो प्रत्येक प्रकार की समस्याएं मिट सकती हैं, शांति स्थापित हो सकती है और मानव सुखी रह सकता है।
 
प्रस्तुति : देवेन्द्र जैन/भूपेश जैन
—कोमल कुमार जैन ड्यूक 

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