3 घंटे चली पत्थरबाजी में 1000 से ज्यादा लोग घायल, 2 की हालत गंभीर, डीएम-एसपी नजारा देखते रहे...

Edited By Updated: 24 Aug, 2025 01:59 PM

1000 people injured in traditional gotmar fair in chhindwara

जिले के पांढुर्णा में हर साल की तरह इस बार भी शनिवार को जाम नदी किनारे गोटमार मेला परंपरागत ढंग से आयोजित किया गया। मेले में पांढुर्णा और सावरगांव के हजारों लोग आमने-सामने आए और एक-दूसरे पर पत्थरों की बरसात कर दी। सुबह 10 बजे शुरू हुई यह पत्थरबाजी...

नेशनल डेस्क: जिले के पांढुर्णा में हर साल की तरह इस बार भी शनिवार को जाम नदी किनारे गोटमार मेला परंपरागत ढंग से आयोजित किया गया। मेले में पांढुर्णा और सावरगांव के हजारों लोग आमने-सामने आए और एक-दूसरे पर पत्थरों की बरसात कर दी। सुबह 10 बजे शुरू हुई यह पत्थरबाजी देर शाम तक चलती रही, जिसमें करीब 1000 लोग घायल हो गए।

घायलों में कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। दो लोगों को इलाज के लिए नागपुर रेफर किया गया है। जानकारी के अनुसार, पांढुर्णा निवासी ज्योतिराम उईके का पैर टूट गया, जबकि निलेश जानराव का कंधा फ्रैक्चर हो गया।

मौके पर तैनात रहा स्वास्थ्य और सुरक्षा अमला

प्रशासन ने मेले को लेकर तैयारी की थी। नदी किनारे 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए थे, जहां 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ मौजूद रहा। वहीं, 600 पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे। हालांकि, पत्थरबाजी को रोकने में सुरक्षा बल नाकाम रहा। कलेक्टर अजय देव शर्मा ने मेले में धारा 144 लागू की थी, लेकिन इसका भी कोई खास असर नहीं दिखाई दिया।

कैसे शुरू होता है गोटमार मेला?

गोटमार मेले की शुरुआत चंडी माता की पूजा से होती है। इसके बाद सावरगांव के लोग जंगल से पलाश का पेड़ काटकर लाते हैं और उसे नदी के बीच में गाड़ते हैं। यह परंपरा सावरगांव निवासी सुरेश कावले के परिवार द्वारा पीढ़ियों से निभाई जा रही है।

सावरगांव के लोग इस पेड़ को लड़की मानकर उसकी रक्षा करते हैं, जबकि पांढुर्णा के लोग उस पर कब्जा करने के लिए पत्थर फेंकते हैं। अंत में जब पांढुर्णा के लोग झंडे को तोड़ लेते हैं, तो दोनों गांव मिलकर माता की पूजा करते हैं और गोटमार की समाप्ति होती है।

अब तक 13 लोगों की मौत, दर्जनों की आंखें या अंग क्षतिग्रस्त

गोटमार की परंपरा लगभग 400 साल पुरानी मानी जाती है। हालांकि इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। 1955 में पहली मौत दर्ज की गई थी। तब से लेकर अब तक 13 लोगों की जान जा चुकी है और दर्जनों लोग आंखें या हाथ-पैर गंवा चुके हैं। जिन परिवारों ने अपनों को खोया है, उनके लिए यह दिन शोक दिवस जैसा होता है। इसके बावजूद यह परंपरा आज भी जारी है।

कोई केस दर्ज नहीं होता

पांढुर्णा थाना प्रभारी अजय मरकाम ने बताया कि अब तक गोटमार से जुड़ा कोई भी मामला थाने में दर्ज नहीं किया गया है। न ही कोई घायल या उनके परिजन शिकायत करते हैं। पुलिस सिर्फ सुरक्षा में लगी रहती है और घायलों को तुरंत इलाज के लिए अस्पताल भेजा जाता है।

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