जानें अयोध्या मामले में क्यों है महत्वपूर्ण 6 दिसंबर 1992 की तारीख

Edited By Anil dev,Updated: 06 Dec, 2019 01:08 PM

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वर्षों पुराना अयोध्या विवाद (Ayodhya)  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद निपट गया। कोर्ट के विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या (Ayodhya) में ही कहीं 5 एकड़ की जमीन देने के फैसले को सभी ने सर्वसम्मति से...

नई दिल्ली: वर्षों पुराना अयोध्या विवाद (Ayodhya)  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद निपट गया। कोर्ट के विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या (Ayodhya) में ही कहीं 5 एकड़ की जमीन देने के फैसले को सभी ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। करीब 500 साल पुराना अयोध्या विवाद तो सुलझ गया, लेकिन इस मामले में 6 दिसंबर 1992 को सांप्रदायिक हिंसे लगी दाग को शायद ही कभी मिटाया जा सकेगा।


कल्याण सिंह सहित अनेक बीजेपी नेताओं पर दर्ज हुआ केस
दरअसल, 27 साल पूर्व 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित जमीन पर बनी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया। असंख्य की संख्या में मौजूद हिंदू कार सेवकों की भीड़ ने मस्जिद के ढांचे को ढाह दिया था। जिसके बाद कई जगह सांप्रदायिक दंगे हुए और सैकड़ों कार सेवक व आडवाणी, कल्याण सिंह (Kalyan Singh) सहित अनेक बीजेपी (BJP) नेताओं पर केस दर्ज हुआ था। उस समय राज्य के मुखिया की कमान कल्याण सिंह के हाथों में थी।


लाखों कारसेवक सुबह विवादित जमीन पर पहुंच गए
6 दिसंबर 1992 की सुबह करीब साढ़े दस बजे हजारों-लाखों की संख्या में कारसेवक पहुंचने लगे। हर किसी के मुंह पर जय श्री राम के नारे थे। भीड़ हिंसक व उन्मादी हो चुकी थी। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों के साथ वहां मौजूद थे। थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी (Murli Manohar Joshi) व लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) भी आ गए थे। भारी सुरक्षा के बीच सभी लगातार बाबरी विध्वंस की तरफ बढ रहे थे, लेकिन पहली कोशिश में पुलिस इन्हें रोकने में कामयाब हो जाती है।


कारसेवक पर गोली नहीं चलनी चाहिए: कल्याण सिंह
दोपहर करीब 12 बजे कारसेवक एक बार फिर मस्जिद की तरफ आगे बढने लगे। इस बार कारसेवकों की भीड़ मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगता है। लाखों की भीड़ में कारसेवक मस्जिद को अपने हाथों में ले लेते हैं। पुलिस अधिकारी भी वहां देखते रह जाते हैं। क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री (Chief MInister) कल्याण सिंह का साफ आदेश था कि कार सेवकों पर गोली नहीं चलेगी। शाम होते-होते मस्जिद को पूरी तरह से विध्वंस कर दिया गया। भीड़ ने उसी जगह पूजा अर्चना की और राम-सीता की मूर्ति की स्थापना कर दी गई।

आडवाणी के भाषण से उग्र हो गई भीड़
उस समय लालकृष्ण आडवाणी की सुरक्षा का जिम्मा 1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता के हाथों में थी। गुप्ता ने एक इंटरव्यू में बताया कि उस दिन आडवाणी को मंच से सुनने के बाद कारसेवक और उग्र हो गये। उन्होंने बताया कि वह करीब 6 घंटे तक मंच पर मौजूद थीं और सारे नेताओं का भाषण सुनी थी। बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल बाद मामला शांत होता हुआ नजर आ रहा है। हालांकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद नाम की संगठन ने कोर्ट के फैसले पर पु्र्नविचार याचिका दायर की है। माना जाता है कि राम मंदिर की सांकेतिक नींव बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना ने ही रखी थी।

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