Bangladesh Violence: अगस्त 1975 की वह काली रात जिसने छीन लिया शेख हसीना से उनका पूरा परिवार

Edited By Utsav Singh,Updated: 06 Aug, 2024 07:48 PM

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बांग्लादेश का इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है, और इस बार भी वही बागी तत्व सामने आए हैं जिनके बारे में 49 साल पहले कहा गया था। 15 अगस्त 1975 को, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या और उनके परिवार की हत्या ने दुनिया को हिला दिया था।

नेशनल डेस्क : बांग्लादेश का इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है, और इस बार भी वही बागी तत्व सामने आए हैं जिनके बारे में 49 साल पहले कहा गया था। 15 अगस्त 1975 को, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या और उनके परिवार की हत्या ने दुनिया को हिला दिया था। अब, शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी और बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी बागी सेना के हाथों से खतरा महसूस हो रहा है। आइए जानते है क्या हुआ था 15 अगस्त 1975 को ...

1975 का तख्तापलट
शेख मुजीबुर्रहमान, जो बांग्लादेश के संस्थापक और पहले प्रधानमंत्री थे, 15 अगस्त 1975 की सुबह ढाका में उनके आवास पर अचानक हुए तख्तापलट का शिकार हुए। यह तख्तापलट सेना की एक असंतुष्ट टुकड़ी द्वारा किया गया था। सेना में उनके खिलाफ काफी असंतोष था। जिसका नतीजा ये हुआ कि 15 अगस्त 1975 की रात सेना की कुछ टुकड़ियों ने ढाका में उनके खिलाफ ऑपरेशन चलाया और ये सब डेढ़ घंटे में पूरा हो गया। इस हमले में शेख मुजीब और उनके परिवार के आठ सदस्य मारे गए। उस रात सेना ने शेख मुजीबुर्रहमान के तीन घरों पर धावा बोला, जिसमें उनके रिश्तेदार और पार्टी के सहयोगियों की भी हत्या कर दी गई।
शेख मुजीब के परिवार की हत्या

शेख हसीना और शेख रेहाना की सुरक्षा

  • शेख हसीना और शेख रेहाना की स्थिति: शेख मुजीब की दोनों बेटियाँ, शेख हसीना और शेख रेहाना, इस तख्तापलट के समय जर्मनी में थीं। वे अपने परिवार के साथ जर्मनी में थीं, क्योंकि शेख हसीना के पति परमाणु वैज्ञानिक थे और उस समय जर्मनी में रह रहे थे। इस कारण से वे इस खूनी हमले से बच गईं और उनकी जान सुरक्षित रही।

  • भारत में शरण: तख्तापलट के बाद, शेख हसीना और शेख रेहाना ने भारत में शरण ली। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें दिल्ली में शरण दी और वे 1975 से 1981 तक दिल्ली में रहीं। यह अवधि उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही, जिसने उन्हें बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी।

बांग्लादेश में लोकतंत्र की वापसी

  • देश की स्थिति: 1981 में बांग्लादेश लौटने के बाद, शेख हसीना ने देश की राजनीतिक अस्थिरता और विकास की चुनौतियों का सामना किया। उनके पिता, शेख मुजीबुर्रहमान, की हत्या और तख्तापलट की घटनाओं ने बांग्लादेश को गंभीर संकट में डाल दिया था।

  • राजनीतिक सुधारों की दिशा: शेख हसीना ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली के लिए एक मजबूत दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने समाज में सुधार लाने और भ्रष्टाचार, गरीबी, और असमानता जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

 1991 के चुनाव और हार

  • राजनीतिक परिदृश्य: 1991 में बांग्लादेश के आम चुनाव में शेख हसीना की पार्टी, बांग्लादेश अवामी लीग, को हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बावजूद, शेख हसीना ने हार मानने के बजाय संघर्ष जारी रखा और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहीं।

  • संगठित संघर्ष: शेख हसीना ने हार के बावजूद पार्टी को संगठित रखा और विपक्षी पार्टियों के साथ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर काम करने की कोशिश की। उनके इस संघर्ष ने बांग्लादेश में स्थिरता और लोकतंत्र की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

    1996 के चुनाव और विजय

  • चुनावी जीत: 1996 में हुए आम चुनाव में बांग्लादेश अवामी लीग ने विजय प्राप्त की और शेख हसीना ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में पद संभाला। उनकी पार्टी की जीत ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।

  • प्रमुख सुधार: शेख हसीना की प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने कई महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक सुधार लागू किए। उनकी नीतियों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में सुधार लाने का प्रयास किया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, गरीबों की भलाई, और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की।

शेख मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना की भूमिका बांग्लादेश की राजनीति और इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। शेख मुजीब का बलिदान और शेख हसीना का संघर्ष बांग्लादेश की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए प्रेरणादायक है। उनका यह संघर्ष और समर्पण आज भी बांग्लादेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में जीवित है और देश की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की कहानी को दर्शाता है। शेख मुजीबुर्रहमान को बांग्लादेश में "बंग-बंधु" (बंगाल का सच्चा मित्र) के रूप में सम्मानित किया जाता है। यह उपाधि उनके देश के प्रति असाधारण समर्पण और त्याग की पहचान है। शेख मुजीब ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई में केंद्रीय भूमिका निभाई और उन्होंने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी नेतृत्व क्षमता और समर्पण ने उन्हें बांग्लादेश के जननायक और संस्थापक के रूप में स्थापित किया।

 

 

 

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