नेहरू को माला पहनाने की सजा भुगत रही यह महिला, ऐसे बिताई पूरी जिंदगी

Edited By Updated: 02 Nov, 2016 07:39 AM

budhni manjhiyan

बुधनी मंझिआईन अब 74 साल की हो गई हैं लेकिन आज भी उनके मन में एक ही टीस है कि जो गुनाह उन्होंने किया ही नहीं समाज ने उसकी सजा दी।

पंचेत (झारखंड): बुधनी मंझिआईन अब 74 साल की हो गई हैं लेकिन आज भी उनके मन में एक ही टीस है कि जो गुनाह उन्होंने किया ही नहीं समाज ने उसकी सजा दी। बुधनी आज भी जब 74 साल पीछे जाती हैं तो चेहरे पर दर्द और आंखों में आंसुओं के सिवा कुछ भी झलकता। 6 दिसंबर, 1959 दिन-रविवार का वो आखिरी दिन था जब उसके चेहरे पर खुशी थी, उसके बाद तो उसे लोगों ने दिए तो बस धक्के और ताने। धनबाद ज़िले के खोरबोना गांव की बुधनी मंझिआईन 6 दिसंबर, 1959 को सुबह से ही काफी खुश थी, नई और अच्छी साड़ी पहनी थी। कान में झुमके और संथालियों के पारंपरिक हार, उस वक्त उनकी उम्र महज 15 साल थी।

पंचेत बांध का उद्घाटन किया
झारखंड में दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के अफसरों ने बुधनी को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के स्वागत के लिए चुना था। उस दिन नेहरू झारखंड में बने पंचेत बांध का उद्घाटन करने आने वाले थे। पंचेत पहुंचने पर बुधनी मंझिआईन ने उनका पारंपरिक तरीक़े से स्वागत किया। प्रधानमंत्री नेहरू ने पंचेत बांध का उद्घाटन बुधनी से ही कराया। वो भारत की पहली मजदूर थी, जिसके हाथों से किसी प्रोजेक्ट का इनोग्रेशन हुआ था। प्रधानमंत्री नेहरू की मौजूदगी में बुधनी ने बटन दबाकर पंचेत बांध का उद्घाटन किया। इसके बाद पंडित नेहरू ने अपनी स्वागत वाली माला बुधनी को दे दी। पूरा दिन खुशी से चहकने वाली बुधनी की जिंदगी में रात को ऐसा तूफान आया कि वे इससे उभर नहीं पाई।

नेहरू को पहनाई माला और बदल गई जिंदगी
दरअसल प्रोग्राम के दौरान नेहरूजी ने बुधनी के हाथों में स्वागत के लिए लाया गया हार दे दिया। रात को घर पहुंचने पर गांव के लोगों ने उसे गालियां दीं और काफी बुरा व्यवहार किया गया। रात में ही गांव में संथाली समाज की पंचायत बैठी। बुधनी को कहा गया कि पहले पंडित नेहरू ने उसे माला दी है, इसलिए आदिवासी परंपरा के मुताबिक वो उनकी पत्नी हो गई है। पंडित नेहरू आदिवासी नहीं थे, इसलिए एक ग़ैर-आदिवासी से शादी रचाने के आरोप में संथाली समाज ने बुधनी को जाति और गांव से बाहर निकालने का फैसला सुना दिया। हालांकि बुधनी का कहना है कि उन्होंने नेहरू को माला नहीं पहनाई लेकिन माला लेना उनके लिए खता बन गया और उन्हें इसकी कीमत  गांव और जाति से बाहर होकर चुकानी पड़ी। बुधनी तब दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) में मजदूरी करती थी। कुछ समय वो वहीं नौकरी करती रही लेकिन 1962 में उसे वहां से भी निकाल दिया। इसके बाद वह बंगाल छोड़कर झारखंड आ गई।

मझियाइन से ऐसे बनी दत्ता
बुधनी सात साल तक भटकती रही और फिर एक दिन सुधीर दत्ता साहब से उनकी मुलाकात हुई। वे प्रोजेक्ट में अफसर थे। सुधीर साहब ने बुधनी को अपनाया और उन्हें मझियाइन से दत्ता बनाया लेकिन समाज के डर से सुधीर ने उससे औपचारिक शादी नहीं हुई। बुधनी और सुधीर की एक बेटी हुई। बुधनी इन दिनों अपनी बेटी रत्ना और दामाद के साथ पंचेत में रहती हैं। साल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बुधनी-नेहरू के किस्से की जानकारी मिली तो उन्होंने बुधनी की खोज करवाई। राजीव गांधी के बुलावे पर वह उनसे मिलने गई भिलाई (ओडिशा) गईं। राजीव गांधी की पहल पर बुधनी को फिर से डीवीसी ने नौकरी पर रख लिया। अब वह रिटायर हो चुकी है। बुधनी अब चाहती है कि राहुल गांधी उनकी मदद करें। उनके रहने के लिए घर बनवा दें और उनकी बेटी को नौकरी दिलवा दें ताकि वह अपनी बची जिंदगी आराम से बिता सके।

 

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