स्कूलों को वार्षिक शुल्क लेने की अनुमति संबंधी आदेश: अदालत ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

Edited By Updated: 06 Aug, 2021 09:56 PM

court seeks reply from delhi government

दिल्ली हाई कोर्ट ने यहां के गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली ट्यूशन फीस में कथित रूप से 15 प्रतिशत की कटौती करने के एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील पर शुक्रवार को दिल्ली सरकार से जवाब मांगा...

नई दिल्लीः दिल्ली हाई कोर्ट ने यहां के गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली ट्यूशन फीस में कथित रूप से 15 प्रतिशत की कटौती करने के एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील पर शुक्रवार को दिल्ली सरकार से जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ 450 से अधिक स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाली 'एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल' की अपील पर नोटिस जारी किया। एकल न्यायाधीश के आदेश में गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन समाप्त होने के बाद की अवधि के लिए छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क लेने की अनुमति दी गई थी।

एक्शन कमेटी के वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा, ‘‘हमने सोचा था कि हम पूरी तरह से जीत गए हैं।’’ उन्होंने अपने अभिवेदन में कहा कि उनकी चुनौती दिल्ली सरकार द्वारा एकल न्यायाधीश के आदेश की गलत व्याख्या किए जाने तक सीमित है। दीवान ने कहा, ‘‘एकल न्यायाधीश और इस अदालत की खंडपीठ द्वारा पारित आदेशों को निष्प्रभावी करने के लिए एक जुलाई को परिपत्र जारी किया गया था।’’ उन्होंने अदालत से एकल न्यायाधीश के आदेश के दायरे को स्पष्ट करने का आग्रह किया।

दिल्ली सरकार ने एक जुलाई के परिपत्र में आदेश दिया था कि गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूल 15 प्रतिशत की कटौती के बाद वित्त वर्ष 2020-21 में वार्षिक शुल्क लेने करने के हकदार हैं। अधिवक्ता संतोष त्रिपाठी ने अपील का विरोध किया और कहा कि चूंकि परिपत्र पहले ही जारी किया जा चुका है, इसलिए समिति को अपील करने के बजाय इसके खिलाफ एक नई याचिका दायर करनी चाहिए। समिति ने अपनी अपील में आरोप लगाया है कि एकल न्यायाधीश के आदेश का इस्तेमाल ट्यूशन फीस में कटौती को लेकर जोर-जबरदस्ती करने के लिए किया जा रहा है, जो कि दुर्भावनापूर्ण और अवैध है।

वकील कमल गुप्ता के माध्यम से दायर अपील में कहा गया है, ‘‘कार्यकारी / डीओई (शिक्षा विभाग) ने व्याख्या की आड़ में एक बाध्यकारी न्यायिक निर्णय को निष्प्रभावी करने, उसकी अवहेलना करने और उसे पूरी तरह से दरकिनार करने के लिए एक नया तरीका खोजा है, जिसके तहत वार्षिक और विकास शुल्क के अलावा ट्यूशन फीस में भी 15 प्रतशित की कटौती की जाएगी।’’

अपील में कहा गया है कि एकल न्यायाधीश के समक्ष एकमात्र विवाद वार्षिक और विकास शुल्क मदों के संग्रह के संबंध में था और इस प्रकार आदेश के अनुसार, सभी स्कूलों ने शुल्क के इन मदों पर 15 प्रतिशत की कटौती की है। यह दावा किया जाता है कि ट्यूशन फीस में 15 प्रतिशत कटौती पर एकल न्यायाधीश ने कोई निर्णय नहीं दिया था। इस मामले में आगे की सुनवाई 20 अगस्त को होगी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने गत सात जून को ‘एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स’ को नोटिस जारी किया था और उससे एकल न्यायाधीश के 31 मई के आदेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) सरकार, छात्रों और एक गैर सरकारी संगठन की अपीलों पर जवाब मांगा था। एकल पीठ ने 31 मई के अपने आदेश में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा अप्रैल और अगस्त 2020 में जारी दो कार्यालय आदेशों को निरस्त कर दिया था, जो वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लेने पर रोक लगाते हैं तथा स्थगित करते हैं।

अदालत ने कहा था कि वे ‘अवैध’ हैं और दिल्ली स्कूल शिक्षा (डीएसई) अधिनियम एवं नियमों के तहत शिक्षा निदेशालय को दी गयी शक्तियों से परे हैं। एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली सरकार के पास गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा लिए जाने वाले वार्षिक और विकास शुल्क को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह उनके कामकाज को अनुचित रूप से बाधित करेगा।

 

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