बच्चों के खिलाफ अपराध: 2020 में हर रोज दर्ज किए गए 350 से अधिक मामले, 400 फीसदी बढ़ीं ऑनलाइन शोषण की घटनाएं

Edited By Yaspal,Updated: 01 Oct, 2021 09:01 PM

crimes against children more than 350 cases registered every day in 2020

भारत में पिछले साल बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल 1,28,531 मामले दर्ज किए गए, जिसका मतलब है कि महामारी के दौरान हर दिन ऐसे औसतन 350 मामले सामने आए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) एनसीआरबी के आंकड़ों पर एक गैर सरकारी संगठन के विश्लेषण में यह...

नई दिल्लीः भारत में पिछले साल बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल 1,28,531 मामले दर्ज किए गए, जिसका मतलब है कि महामारी के दौरान हर दिन ऐसे औसतन 350 मामले सामने आए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) एनसीआरबी के आंकड़ों पर एक गैर सरकारी संगठन के विश्लेषण में यह बात कही गई है। हालांकि, चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने अपने विश्लेषण में कहा कि 2019 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की तुलना में, ऐसे मामलों की कुल संख्या में 13.3 प्रतिशत की गिरावट आई है।

वर्ष 2019 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,48,185 मामले दर्ज किए गए थे जिसका मतलब है कि देश में हर दिन ऐसे 400 से अधिक अपराध हुए। बाल अधिकार संगठन ने कहा, '' हालांकि बच्चों के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या में गिरावट आई है, लेकिन बाल विवाह के मामलों में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि एक वर्ष में ऑनलाइन दुर्व्यवहार के मामलों में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।''

रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों में पिछले एक दशक (2010-2020) में 381 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है जबकि देश में कुल अपराधों की संख्या में 2.2 प्रतिशत की कमी आई है। संगठन ने कहा, “राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है पूरे देश में बच्चों के खिलाफ अपराध के जितने मामले सामने आए, उनमें से 13.2 प्रतिशत मामले मध्य प्रदेश, 11.8 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, 11.1 प्रतिशत महाराष्ट्र, 7.9 प्रतिशत पश्चिम बंगाल और 5.5 प्रतिशत बिहार से सामने आए। देश में सामने आए कुल मामलों में से 49.3 प्रतिशत मामले इन राज्यों से हैं।''

संगठन की पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी निदेशक प्रीति म्हारा ने कहा: ''मानवीय संकट के दौरान बाल संरक्षण के मुद्दे गंभीर हो जाते हैं। कोविड के दौरान स्कूल बंद होने, महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगाई गईं पाबंदियों से पैदा हुई आर्थिक सुस्ती ने कमजोर वर्ग के लोगों की आजीविका और घरेलू आर्थिक व खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।'' उन्होंने कहा, "इसलिए, इस बात की अत्यधिक आशंका है कि इसने बाल श्रम, बाल विवाह, बाल तस्करी के साथ-साथ लिंग आधारित हिंसा के मामलों में वृद्धि में योगदान किया।'' क्राई के विश्लेषण के अनुसार, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 2019 में 525 मामले दर्ज हुए जबकि 2020 में लगभग 50 फीसदी अधिक यानी 785 मामले दर्ज किये गए।

हालांकि, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज मामलों की संख्या में 2019 में 770 थी। 2020 में ऐसे मामलों में लगभग 38 प्रतिशत की गिरावट देखी गई और इनकी संख्या 476 रही। यह विश्लेषण हाल में विश्व श्रमिक संगठन (आईएलओ) की बाल श्रम 2020 रिपोर्ट के वैश्विक अनुमानों के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि 2016 की तुलना में 2020 में पांच से 11 वर्ष के आयु वर्ग के 1 करोड़ 68 लाख से अधिक बच्चे बाल श्रम में लिप्त थे। नए विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी के कारण बढ़ती गरीबी के परिणामस्वरूप 2022 के अंत तक 89 लाख और बच्चे बाल श्रम को मजबूर होंगे।

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