दुनिया की सबसे बहादुर फौज: जानिए किन -किन देशों की सेनाओं में होते हैं गोरखा सिपाही

Edited By Updated: 04 Aug, 2025 04:02 PM

gorkhas the world s most fearless soldiers

अगर कोई कहे कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है। गोरखा सैनिकों की बहादुरी और जज्बे की मिसाल सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में दी जाती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भारत अंग्रेजों के अधीन था, तब भी...

नेशनल डेस्क: अगर कोई कहे कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है। गोरखा सैनिकों की बहादुरी और जज्बे की मिसाल सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में दी जाती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भारत अंग्रेजों के अधीन था, तब भी गोरखाओं की वीरता को देखकर ब्रिटिश सेना ने इनके नाम पर एक अलग रेजिमेंट बना दी थी। आज भी गोरखा सैनिक कई देशों की सेनाओं में भर्ती होकर अपनी बहादुरी का लोहा मनवा रहे हैं।

भारतीय सेना में कितनी गोरखा रेजिमेंट हैं?

भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंटों की संख्या कुल 7 है। इन 7 रेजीमेंटों में मिलाकर कुल 43 बटालियनें होती हैं। यह रेजिमेंट खासतौर पर नेपाल और भारत के गोरखा युवाओं के लिए बनाई गई हैं। इनकी भर्ती की परंपरा ब्रिटिश शासन काल से चली आ रही है, जिसे भारत ने आज़ादी के बाद भी बरकरार रखा। इन रेजीमेंटों में उत्तराखंड, दार्जिलिंग, हिमाचल प्रदेश, असम और मेघालय जैसे पहाड़ी इलाकों से भी गोरखा युवक भर्ती होते हैं। इनमें से अधिकांश गोरखा सिपाही नेपाली मूल के होते हैं और इनकी भर्ती आज भी नेपाल में आयोजित होने वाली विशेष रैली के माध्यम से की जाती है।

किन देशों की सेनाओं में होते हैं गोरखा भर्ती?

गोरखा सैनिकों की बहादुरी का सम्मान भारत ही नहीं बल्कि अन्य कई देश भी करते हैं। तीन देशों भारत, यूनाइटेड किंगडम (UK) और नेपाल की सेनाएं नियमित रूप से गोरखाओं की भर्ती करती हैं। इन तीनों देशों के रक्षा अधिकारी मिलकर हर साल संयुक्त भर्ती रैली का आयोजन नेपाल में करते हैं। इस रैली में शारीरिक और लिखित परीक्षा होती है। जो गोरखा युवा इसे सफलतापूर्वक पास करते हैं, वे इन तीनों देशों की सेनाओं में भर्ती होने के योग्य माने जाते हैं। गोरखाओं को पाकिस्तान और चीन ने भी सेना में बुलाया था इतिहास के पन्नों में एक और दिलचस्प तथ्य दर्ज है पाकिस्तान और चीन ने भी गोरखाओं को अपनी सेनाओं में शामिल करने की कोशिश की थी। पाकिस्तान ने भारत की आजादी के बाद गोरखाओं को अपनी फौज में भर्ती होने का निमंत्रण दिया था। वहीं 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन ने भी गोरखाओं को अपनी सेना का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दिया। हालांकि नेपाल सरकार ने इन दोनों देशों के प्रस्तावों को साफ शब्दों में खारिज कर दिया। नेपाल ने स्पष्ट कर दिया कि उनके नागरिक केवल भारत और ब्रिटेन की सेनाओं में ही सेवा देंगे। इस फैसले ने गोरखा सैनिकों की वफादारी और प्रतिबद्धता को और अधिक मजबूती प्रदान की।

क्यों होते हैं गोरखा इतने खास?

गोरखा सैनिकों को दुनिया की सबसे बहादुर सेनाओं में गिना जाता है। इनकी पहचान है खुकरी — एक विशेष प्रकार की घुमावदार छुरी, जिसे वे हमेशा अपने पास रखते हैं। यह सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति, परंपरा और वीरता का प्रतीक है। गोरखा सैनिकों की कठिन ट्रेनिंग, अनुशासन, ईमानदारी और निडरता उन्हें अन्य सैनिकों से अलग बनाती है। चाहे ऊंचे पहाड़ हों या दुर्गम इलाके, गोरखा वहां डटे रहते हैं जहां बाकी पीछे हट जाते हैं।

 

 

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