'शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता'... स्कूल में शारीरिक दंड देने पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Edited By Updated: 07 Aug, 2024 10:08 AM

high court s big decision on corporal punishment in school

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि स्कूल में बच्चों को सुधारने के लिए शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता। यह दंड बच्चों के जीवन की स्वतंत्रता और गरिमा का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत...

नेशनल डेस्क: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि स्कूल में बच्चों को सुधारने के लिए शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता। यह दंड बच्चों के जीवन की स्वतंत्रता और गरिमा का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर शारीरिक हिंसा क्रूरता की श्रेणी में आती है।

क्या था मामला ?
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले, जहां एक स्कूल की शिक्षिका एलिजाबेथ जोस ने दो छात्राओं को शौचालय में मिलने पर उनके पहचान पत्र जब्त कर लिए थे। इनमें से एक छठी कक्षा की छात्रा ने शिक्षिका के दंड से डरकर आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद, शिक्षिका के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था।

शिक्षिका की दलील
शिक्षिका के वकील ने अदालत में दलील दी कि शिक्षिका का आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा नहीं था और वह केवल स्कूल में अनुशासन बनाए रखने के अपने कर्तव्यों का पालन कर रही थी। हालांकि, कोर्ट ने इस दावे को मानने से इंकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि शिक्षिका के खिलाफ आरोपों पर गौर किया जाना जरूरी है।

कोर्ट का निर्णय
कोर्ट की पीठ, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल शामिल थे, ने स्पष्ट किया कि शारीरिक दंड शिक्षा के उद्देश्य के विपरीत है और इसे अनुशासन के नाम पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह निर्णय शिक्षा और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के प्रति एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!