Swiggy, Zomato, Ola और Uber के लिए करनी होगी और जेब ढीली, जानें ऐसा क्यों

Edited By Updated: 26 Nov, 2025 06:18 PM

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21 नवंबर से लागू हुए नए लेबर कोड्स का असर गिग-इकोनॉमी प्लेटफॉर्म्स जैसे Swiggy, Zomato, Ola और Uber पर पड़ सकता है। कंपनियों को अब सोशल-सिक्योरिटी फंड में योगदान देना होगा, जिससे प्रति-ऑर्डर लागत बढ़ सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, इसका बोझ यूजर्स पर...

नेशनल डेस्क : यदि आप रोज़ाना राइड के लिए Ola-Uber और खाना मंगाने के लिए Swiggy या Zomato का इस्तेमाल करते हैं, तो आने वाले समय में आपकी जेब पर इसका असर पड़ सकता है। 21 नवंबर से लागू हुए नए लेबर कोड्स का सीधा असर गिग-इकोनॉमी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई देगा। अब कंपनियों को सोशल-सिक्योरिटी फंड में योगदान देना होगा, जिससे उनकी प्रति-ऑर्डर और ऑपरेशन लागत बढ़ सकती है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के अनुसार, यह अतिरिक्त खर्च अंततः यूजर्स तक पहुंच सकता है। इसका मतलब है कि फूड डिलीवरी, कैब राइड और क्विक-कॉमर्स सर्विसेज का बिल आने वाले समय में महंगा हो सकता है।

यूजर्स पर बढ़ेगा खर्च
रिपोर्ट में बताया गया है कि नए लेबर कोड्स लागू होने के बाद Swiggy, Zomato, Ola और Uber जैसी कंपनियों की प्रति ऑर्डर लागत बढ़ सकती है। सरकार के सोशल-सिक्योरिटी फंड में कंपनियों को सालाना टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत या गिग वर्कर्स को दिए जाने वाले भुगतान का 5 प्रतिशत तक योगदान देना होगा। अगर 5 प्रतिशत की सीमा लागू होती है, तो फूड डिलीवरी ऑर्डर पर औसतन 3.2 रुपये और क्विक-कॉमर्स ऑर्डर पर 2.4 रुपये अतिरिक्त लागत जुड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका सीधा बोझ ग्राहकों पर डाला जाएगा।

प्लेटफॉर्म फीस में बदलाव की संभावना
रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियां यह अतिरिक्त खर्च प्लेटफॉर्म फीस बढ़ाकर, सर्ज-आधारित चार्जेज लगाकर या डिलीवरी प्राइस में बदलाव करके कवर कर सकती हैं। फिलहाल ये प्लेटफॉर्म्स दुर्घटना बीमा, हेल्थ इंश्योरेंस, इनकम प्रोटेक्शन और मैटरनिटी बेनिफिट जैसी सुविधाएं अलग से उपलब्ध कराते हैं। अगर सभी लाभ एक केंद्रीकृत फंड के माध्यम से दिए जाएं, तो प्रति-ऑर्डर अतिरिक्त लागत लगभग 1-2 रुपये तक रह सकती है। बावजूद इसके, कुल खर्च में बढ़ोतरी लगभग तय है।

नए लेबर कोड्स से किसे फायदा?
नए लेबर कोड्स से फॉर्मल स्टाफिंग कंपनियों को फायदा होगा क्योंकि कंप्लायंस आसान और केंद्रीकृत हो जाएगा। इससे TeamLease जैसी कंपनियों की भूमिका मजबूत हो सकती है। हालांकि, गिग वर्कर्स के अनियमित कार्य समय, बार-बार प्लेटफॉर्म बदलने और एक साथ कई ऐप्स पर काम करने जैसी परिस्थितियों में सोशल-सिक्योरिटी लाभों की ट्रैकिंग चुनौतीपूर्ण होगी। इस प्रक्रिया में सरकार का e-Shram डेटाबेस अहम भूमिका निभाएगा।

21 नवंबर से लागू लेबर कोड्स
चार नए लेबर कोड्स ने 29 पुराने कानूनों को बदलकर एकीकृत सिस्टम प्रदान किया है। पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को औपचारिक सामाजिक सुरक्षा ढांचे में शामिल किया गया है। वेजेस कोड के तहत अब केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय करेगी, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह गिग वर्कर्स पर लागू होगी या नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि मजबूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल-टाइम वर्कर ट्रैकिंग के बिना इन लाभों को समान रूप से सभी तक पहुंचाना मुश्किल होगा।

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