उच्च शिक्षा में विश्व के शीर्ष 300 में स्थान नहीं बना पाए भारतीय संस्थान, जानिए क्या है वजह

Edited By Ravi Pratap Singh,Updated: 18 Sep, 2019 01:26 PM

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देश में उच्च शिक्षा को लेकर काफी समय से बहस चल रही है. इस साल द हायर एजुकेशन की रिपोर्ट में एक बार फिर देश के उच्च संस्थान को लेकर एक रिपोर्ट आयी है. जिसमें भारत एक बार फिर दुनिया की टॉप 300 यूनिवर्सिटी में शामिल नहीं हो पाया है.

नेशनल डेस्कः दुनिया में भारतीय संस्कृति और शिक्षा की अलग पहचान है। देश के आईआईटी और मेडिकल कॉलेज में दुनिया के कई देशों से छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने पहुंचते हैं। दुनिया भर के शिक्षण संस्थानों को रैंकिंग देने वाली संस्था ‘द हायर एजुकेशन’ (The Higher Education) ने भारत की उच्च शिक्षा को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें दुनिया की 300 टॉप यूनिवर्सिटी में भारत का कोई भी विश्वविद्यालय, उच्च संस्थान शामिल नहीं है। यह रिपोर्ट हैरान करने वाली है, क्योंकि देश में आईआईटी, आईआईएम, और मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थान मौजूद हैं।

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हालांकि ‘द हायर एजुकेशन’ की रिपोर्ट में यह बात बताई गई है कि आईआईएससी संस्थान की रैकिंग के गिरने का प्रमुख कारण उसके द्वारा दिए गए कम रिसर्च पेपर है जिसके आधार पर किसी संस्थान की रैंकिंग तय की जाती है और ये बात भारत के दूसरे संस्थानों पर भी लागू होती है।

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भारत में 9 छात्रों में से सिर्फ 1 पहुंच पाता है कॉलेज
यह बात जानकार आपको शायद हैरानी होगी कि भारत में स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुंच पाता है। भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानी सिर्फ़ 11 फ़ीसदी है। नैसकॉम और मैकिन्से  (The NASSCOM-McKinsey report "Perspective 2020) के शोध के अनुसार मानविकी में 10 में से एक और इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके चार में से एक भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य हैं।

वहीं, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद, NAAC (National Assessment and Accreditation Council) एक संस्थान है जो भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों का आकलन तथा प्रत्यायन (मान्यता) का कार्य करती है। नैक का शोध बताता है कि भारत के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का स्तर बेहद कमज़ोर है। भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम यह है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी प्रत्येक वर्ष 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी रहती है।

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कैसे बदलेंगे हालात ?
20 साल पहले मैनेजमेंट गुरू पीटर ड्रकर ने ऐलान किया था, "आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनिया के किसी भी समाज से ज़्यादा प्रतिस्पर्धात्मक समाज बन जाएगा. दुनिया में गरीब देश शायद समाप्त हो जाएं लेकिन किसी देश की समृद्धि का स्तर इस बात से आंका जाएगा कि वहां की शिक्षा का स्तर किस तरह का है."

अब क्योंकि देश को विश्व पटल पर अगर अपनी शिक्षण व्यवस्था और उच्च शिक्षा की रैंकिग को ठीक करना है तो यह जरूरी है कि उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने रिसर्च पेपर और रैंकिग से संबंधित दस्तावेजों को विश्व पटल पर रखना चाहिए।

भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात 11 फ़ीसदी है। वहीं, अमरीका में यह अनुपात 83 फ़ीसद है। भारत को मौजूदा 11 फीसद अनुपात को 15 फ़ीसदी तक ले जाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2,26,410 करोड़ रुपए का निवेश की आवश्यकता है जबकि 11वीं योजना में इसके लिए सिर्फ़ 77,933 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया था।देश में पिछले  50 सालों में सिर्फ 44 निजी संस्थाओं को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। पिछले 16 सालों में 69 और निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता दी गई जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है।

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इंफ़ोसिस के पूर्व प्रमुख नारायण मूर्ति कहते हैं कि अपनी शिक्षा प्रणाली की बदौलत ही अमरीका ने सेमी कंडक्टर, सूचना तकनीक और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इतनी तरक्की की है। इसके लिए वहां के विश्वविद्यालयों में किए गए शोध का बहुत बड़ा हाथ है यानी देश के संपूर्ण विकास का आधार ‘शिक्षा का ऊंचा स्तर’ है जिसमें शोध को ज्यादा से ज्यादा स्थान दिया जाना चाहिए। 

बहरहाल, द हायर एजुकेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के उच्च शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 300 उच्च शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालयों की श्रेणी में शामिल नहीं हैं। लेकिन ये बात भी सही है कि भारत का उच्च शिक्षा का स्तर एशिया के देशों में काफी ऊंचे पायदान पर है। हमारे देश के शिक्षण संस्थान दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। देश में विदेशों से उच्च शिक्षा हासिल करने छात्र भी आ रहे हैं। ऐसे में ‘द हायर एजुकेशन’ का ये आंकड़ा चिंता तो पैदा करता है लेकिन, परेशानी का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि देश में शिक्षा के स्तर के विकास के लिए सरकार निरंतर सार्थक कदम उठा रही है।

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