Earthquake Alert: इस राज्य में दस्तक दे सकता है विनाशकारी भूकंप! वैज्ञानिकों की चेतावनी हो सकती है खतरनाक

Edited By Updated: 01 Aug, 2025 04:38 PM

is a major earthquake looming over uttarakhand

हिमालयी क्षेत्र में बसे उत्तराखंड को प्रकृति ने अपार सुंदरता से नवाज़ा है लेकिन यह क्षेत्र एक बड़े खतरे से भी जूझ रहा है - भूकंप। विशेषज्ञों का कहना है कि यह इलाका भूकंपीय दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील है। पिछले कुछ वर्षों में कई छोटे-छोटे भूकंप तो...

नेशनल डेस्क: हिमालयी क्षेत्र में बसे उत्तराखंड को प्रकृति ने अपार सुंदरता से नवाज़ा है लेकिन यह क्षेत्र एक बड़े खतरे से भी जूझ रहा है - भूकंप। विशेषज्ञों का कहना है कि यह इलाका भूकंपीय दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील है। पिछले कुछ वर्षों में कई छोटे-छोटे भूकंप तो आए हैं लेकिन बड़ी आपदा की आशंका अब भी बनी हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड सहित पूरा हिमालयी क्षेत्र सेंट्रल सिस्मिक गैप के अंतर्गत आता है, जहां लंबे समय से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है।

क्या है सेंट्रल सिस्मिक गैप और क्यों है यह चिंताजनक?

सेंट्रल सिस्मिक गैप वह क्षेत्र है जो हिमालय के कांगड़ा से लेकर नेपाल-बिहार सीमा तक फैला है। यह इलाका भूकंपीय ऊर्जा के जमा होने की सबसे बड़ी पट्टी माना जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में 500-600 वर्षों से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है और अब यहां भारी मात्रा में ऊर्जा जमा हो चुकी है। विशेषज्ञ के अनुसार उत्तराखंड, सिक्किम और पूर्वोत्तर भारत के इलाके सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। उनका कहना है कि यह सिस्मिक गैप आने वाले समय में 7 या 8 रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता वाला भूकंप ला सकता है।

छोटे भूकंपों से नहीं निकलती पूरी ऊर्जा

उत्तराखंड के कई इलाकों जैसे उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली और पिथौरागढ़ में अक्सर हल्के भूकंप महसूस होते हैं। लेकिन विशेषज्ञों की राय में यह राहत की बात नहीं है। ये छोटे भूकंप जमा हुई ऊर्जा का केवल 5-6% ही रिलीज कर पाए हैं। बचा हुआ बड़ा हिस्सा अब भी धरती के भीतर दबा हुआ है और भविष्य में किसी बड़े भूकंप के रूप में बाहर आ सकता है।

उत्तराखंड क्यों है इतना संवेदनशील?

उत्तराखंड भूकंपीय जोन 4 और 5 में आता है जो सबसे खतरनाक श्रेणियां मानी जाती हैं। हिमालय का निर्माण अभी भी जारी है और इंडियन प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट के बीच लगातार टकराव इस प्रक्रिया को बढ़ा रहा है। यह टकराव न सिर्फ पर्वतों को ऊंचा कर रहा है बल्कि इसके साथ ही ज़मीन के भीतर बड़ी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है। इस क्षेत्र की मिट्टी और चट्टानों की बनावट भी ढीली है, जिससे जब कोई बड़ा भूकंप आता है तो उसका असर और ज्यादा विनाशकारी हो सकता है। इमारतें गिर सकती हैं, सड़कें टूट सकती हैं और जन-धन की भारी हानि हो सकती है।

क्या दिल्ली भी है खतरे में?

हालांकि दिल्ली की ज़मीन अपेक्षाकृत मजबूत मानी जाती है, लेकिन हिमालय क्षेत्र में आने वाला कोई बड़ा भूकंप वहां भी झटके पहुंचा सकता है। इसका असर इमारतों पर पड़ सकता है और जनजीवन प्रभावित हो सकता है। इसलिए दिल्ली को भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं माना जा सकता।

क्या कहती है हाल की अंतरराष्ट्रीय गतिविधि?

हाल ही में रूस में आया 8.8 तीव्रता का भूकंप यह दर्शाता है कि भूकंप कहीं भी, किसी भी समय आ सकता है। इस घटना ने वैज्ञानिकों को एक बार फिर से हिमालयी क्षेत्र की भूकंपीय गतिविधियों की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि एशिया की टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल जारी है।

क्या है समाधान और तैयारी का रास्ता?

वैज्ञानिक मानते हैं कि भूकंप की भविष्यवाणी करना कठिन है, लेकिन इससे बचाव की तैयारी की जा सकती है। इसके लिए सरकार, स्थानीय प्रशासन और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। भूकंप-रोधी निर्माण, सार्वजनिक चेतावनी प्रणाली, आपदा प्रबंधन अभ्यास और जागरूकता अभियानों को तेज करना होगा। विशेष रूप से उत्तराखंड जैसे इलाकों में निर्माण कार्यों को सख्त नियमों के अधीन करना अनिवार्य है।

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