महाराष्ट्र किसान संकट: इस साल इतने अन्नदाताओं ने समाप्त की जीवनलीला, चौकानें वाले आंकड़े आए सामने

Edited By Updated: 18 Sep, 2025 06:42 PM

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महाराष्ट्र में जनवरी से सितंबर 2025 के बीच 1,500 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। मराठवाड़ा और विदर्भ में मामले सबसे ज्यादा हैं। आत्महत्याओं के पीछे कर्ज का दबाव, फसल नुकसान और आर्थिक तंगी मुख्य कारण हैं। किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने सरकार से...

नेशनल डेस्क : महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के मामले चिंताजनक रूप से बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से सितंबर 2025 तक करीब 1,500 से अधिक किसानों ने अपनी जान दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज का बोझ, फसल नुकसान और आर्थिक तंगी मुख्य कारण हैं। विपक्षी दल और किसान संगठन सरकार पर तत्काल राहत पैकेज और मजबूत कृषि नीति लागू करने का दबाव बना रहे हैं।

आंकड़ों में चौकाने वाला खुलासा
राज्य सरकार ने 36 जिलों के किसानों की आत्महत्या के आंकड़े साझा किए हैं। जनवरी से मार्च 2025 के बीच 767 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि अप्रैल से सितंबर तक यह संख्या दोगुनी से अधिक हो गई। सूत्रों के अनुसार, अप्रैल से अब तक 1,000 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान ली है। जनवरी से जून तक मराठवाड़ा क्षेत्र में ही 520 किसानों की मौत हुई, जो पिछले साल की तुलना में 20% अधिक है।

सबसे ज्यादा मामले मराठवाड़ा के बीड, नांदेड़, संभाजीनगर (औरंगाबाद) और विदर्भ के यवतमाल, अमरावती, अकोला, बुलढाणा तथा वाशिम जिलों से दर्ज हुए हैं। बीड जिले में अकेले पहले छह महीनों में 120 से अधिक किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में कुल 1,546 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से 517 पात्र माने गए हैं, जबकि 279 को अपात्र ठहराया गया। 488 मामलों की जांच जारी है।

आत्महत्या के प्रमुख कारण
प्रशासनिक अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों की आत्महत्याओं के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। बैंक और साहूकारों के बढ़ते कर्ज का बोझ तथा चुकाने की असमर्थता सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा, मौसम की मार से फसलों का नुकसान, लगातार बारिश के कारण सोयाबीन, उड़द, मूंग और कपास जैसी फसलों का पानी में डूब जाना, उत्पादन लागत में तेजी से वृद्धि जबकि बाजार में कम दाम मिलना, सामाजिक दबाव और प्रशासनिक उपेक्षा भी प्रमुख वजहें हैं।

किसान संगठनों का आंदोलन तेज
किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं को लेकर विपक्षी दल और किसान संगठन सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान संगठनों का कहना है कि कृषि प्रधान देश में ऐसी घटनाएं सरकार की विफलता को दर्शाती हैं। यदि तत्काल राहत और ठोस कृषि नीति नहीं अपनाई गई, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने चार दिन पहले नासिक में किसानों के समर्थन में बड़ा आंदोलन किया। पार्टी ने राज्य के सभी किसानों के कर्ज माफी, बेमौसम बारिश और बाढ़ से प्रभावित फसलों का सर्वे तथा उचित मुआवजा देने की मांग की। किसान नेता राजू शेट्टी, सदाभाऊ खोत, बच्चू कडू समेत अन्य संगठनों ने भी सरकार से फसलों की खरीद मूल्य बढ़ाने, बिचौलियों को हटाने और नुकसानग्रस्त किसानों को मुआवजा देने की अपील की है।

सरकार का दावा: मुआवजा वितरण जारी
महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि 22 जिलों के आंकड़े अभी शामिल नहीं किए गए हैं। 14 जिलों में 1,546 मौतों के बीच 516 किसानों के परिवारों को मुआवजा मिल चुका है, जबकि 44 पात्र किसानों को अभी वितरण बाकी है। वाशिम जिले में 88 किसानों की आत्महत्या हुई, जिनमें 29 परिवारों को सहायता प्रदान की गई है। शेष 15 मामलों की जांच चल रही है। सरकार ने 279 किसानों को अपात्र घोषित किया है।

यह संकट महाराष्ट्र की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबी अवधि की नीतियां जैसे कर्ज राहत, फसल बीमा और बाजार सुधार आवश्यक हैं ताकि किसानों को आर्थिक स्थिरता मिल सके।

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