जहर या हार्ट अटैक ! आखिर कैसे हुई शास्त्री जी की मौत ? 57 साल के बाद भी अनसुलझा रहस्य

Edited By Updated: 11 Jan, 2023 10:49 AM

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देश के दूसरे प्रधानमंत्री और ‘जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का 11 जनवरी 1966 को निधन हुआ था। अपनी साफ-सुथरी छवि और सादगी के लिए प्रसिद्ध शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद नौ जून 1964 को...

वाराणसीः  देश के दूसरे प्रधानमंत्री और ‘जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का 11 जनवरी 1966 को निधन हुआ था। अपनी साफ-सुथरी छवि और सादगी के लिए प्रसिद्ध शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद नौ जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था। वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी।  उनकी रहस्यमयी मौत को लेकर दो कहानियां हैं। एक कहा जाता है कि उन्हें हार्ट अटैक आया था और दूसरा कि उन्हें जहर दिया गया था।  57 साल के बाद भी यह अनसुलझा रहस्य है। 

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1. संपत्ति के नाम सिर्फ धोती-कुर्ता और कुछ किताबें
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि देश का सबसे ताकतवर शख्स होने के बाद भी जब शास्त्री जी इस दुनिया से रुखसत हुए तो उनके पास संपत्ति के नाम पर केवल एक धोती-कुर्ता और कुछ किताबें ही थी। 

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2. 17 साल की उम्र में गए जेल
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में देश के दूसरे प्रधानमंत्री 9 साल तक जेल में रहे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए लेकिन बालिग न होने की वजह से उनको छोड़ दिया गया। इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए।1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे है. इस तरह कुल नौ साल वह जेल में रहे।

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3. आम लाने पर पत्नी का विरोध
स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए दो आम छिपाकर ले आई थीं। इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया। शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है।

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4. अवधि पूरी होने से पहले लाैटे जेल 
उनमें नैतिकता इस हद तक कूट कर भरी थी कि एक बार जेल से उनको बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन की पैरोल पर छोड़ा गया। लेकिन बीच में वह चल बसी तो शास्त्री जी वह अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस आ गए।


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5. दहेज में ली खादी
शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे। तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया। शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी। वहीं अपनी शादी में उन्होंने दहेज लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया।

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6. जय जवान-जय किसान का नारा 
1964 में जब वह प्रधानमंत्री बने थे तब देश खाने की चीजें आयात करता था। उस वक्त देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था।1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा। तब के हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। इन्हीं हालात से उन्होंने हमें 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया।

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7. ट्रांसपोर्ट सेक्टर से महिलाओं को जोड़ा 
ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर के तौर पर सबसे पहले उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडक्टर लाने की शुरुआत की। यही नहीं, प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उन्होंने लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार का सुझाव दिया था।

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8.देश के लिए आज़ादी दूसरों का शोषण करके नहीं
उनका विचार था कि हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण करके नहीं। ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखाकर। मैं अपने देश की आजादी ऐसे चाहता हूं कि अन्य देश मेरे आजाद देश से कुछ सीख सकें और मेरे देश के संसाधन मानवता के लाभ के लिए प्रयोग हो सकें।

9.माैत पर अभी भी संदेह
पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग को खत्म करने के लिए वह समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गए थे। इसके ठीक एक दिन बाद 11 जनवरी 1966 को खबर आई कि हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई है। हालांकि इस पर अभी भी संदेह बरकरार है और हाल ही में उनके परिवार ने भी उनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग सरकार से की है।

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10. मरणोपरांत मिला भारत रत्न 
शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 2 अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था। उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में अंतिम सांस ली थी। उसी दिन उन्होंने ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे। वह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया था।

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