Edited By Rohini Oberoi,Updated: 10 Dec, 2025 12:58 PM

गोवा के मशहूर नाइट क्लब 'बर्च बाय रोमियो लेन' में 7 दिसंबर को लगी भीषण आग में जान गंवाने वाले 25 लोगों में असम (Assam) के तीन मेहनती युवाओं की बेहद मार्मिक कहानी सामने आई है। ये तीनों युवा अपने परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करते हुए...
नेशनल डेस्क। गोवा के मशहूर नाइट क्लब 'बर्च बाय रोमियो लेन' में 7 दिसंबर को लगी भीषण आग में जान गंवाने वाले 25 लोगों में असम (Assam) के तीन मेहनती युवाओं की बेहद मार्मिक कहानी सामने आई है। ये तीनों युवा अपने परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करते हुए कम कमाई की मजबूरी में अपना घर छोड़कर गोवा आए थे। इनमें से एक शख्स राहुल तांती (32) की तो उस रात पहली नाइट ड्यूटी (First Night Duty) थी जहां यह भयानक हादसा हुआ।
राहुल तांती: तीसरी संतान के जन्म के बाद कमाई बढ़ाने की मजबूरी
32 वर्षीय राहुल तांती असम के कछार जिले के रंगिरखारी गांव के रहने वाले थे और सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनका परिवार चाय की खेती करने वाली जनजाति से आता है। इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) की रिपोर्ट के मुताबिक एक महीने पहले ही राहुल को बेटा पैदा हुआ था। उनकी नौ और छह साल की दो बेटि यां भी हैं।
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राहुल के भाई देवा ने बताया, "चाय के बागान में काम करने की मज़दूरी सिर्फ 200 रुपये रोज़ाना है जो परिवार पालने के लिए काफी नहीं थी। वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना चाहते थे ताकि वे हमसे बेहतर जीवन जी सकें।" राहुल ने माली की दिन की नौकरी के अलावा ज़्यादा कमाने के लिए रात में क्लब में काम शुरू किया था ताकि वह जल्दी अपने बच्चों के पास वापस आ सकें लेकिन यह हादसा उनकी पहली नाइट शिफ्ट के दौरान ही हो गया।

बेहतर सैलरी की तलाश में आए थे दो अन्य युवा
गोवा हादसे में मारे गए असम के बाकी दो युवाओं की कहानी भी लगभग वैसी ही है। यह युवा भी उसी कछार जिले के सिल्कूरी ग्रांट गांव के चाय जनजाति परिवार से थे। चार भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के नाते वे डेढ़ साल पहले बेहतर सैलरी की तलाश में गोवा चले गए थे। उनके पड़ोसी ने बताया, परिवार बहुत गरीब है और चाय के बागान में सैलरी बहुत कम और अनियमित होती है।

दिगंता पाटिर (22): यह धेमाजी जिले के एक मिसिंग आदिवासी परिवार से थे। उनके चाचा बिस्वा पाटिर ने बताया कि पिता की मौत के बाद दिगंत 18 साल की उम्र से ही माँ और छोटे भाई को सहारा देने के लिए असम के बाहर काम कर रहे थे।
अगले महीने घर लौटने का था प्लान
सबसे दर्दनाक बात यह है कि दिगंत पाटिर कई सालों की मेहनत के बाद अगले महीने अपने गांव लौटने का प्लान बना रहे थे। उनके चाचा ने बताया, "दोनों भाइयों ने मिलकर घर बनाने के लिए काफी कमा लिया था। वह वापस आकर कुछ शुरू करने और अकेली मां के साथ रहने का प्लान बना रहा था लेकिन अब वह मां पहले से कहीं ज़्यादा अकेली हो गई हैं।"
असम के युवाओं के लिए जॉब की कमी, कम सैलरी और हर साल भयानक बाढ़ जैसी समस्याओं के कारण उन्हें रोज़ी-रोटी की तलाश में राज्य छोड़कर बाहर जाना पड़ता है और इसी मजबूरी ने इन परिवारों को जीवन भर का दर्द दे दिया है।