अरुण खेत्रपाल: जब दुश्मन के कई टैंक उड़ा कर बैटल ऑफ बसंतर के नायक ने अकेले ही रच डाला इतिहास

Edited By Updated: 15 Dec, 2020 05:39 PM

paramver chakra winner arun khetarpal

16 दिसंबर, 1971 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन पाकिस्तानी सेना ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे।

साम्बा (संजीव): 16 दिसंबर, 1971 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन पाकिस्तानी सेना ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे। युद्ध भारत ने जीता क्योंकि भारत के पास अरूण खेत्रपाल जैसे वीर सैनिक थे, जिनकी वजह से यह जीत मुमकिन हो पाई। भारतीय सेना के सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
    उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता बने खेत्रपाल की वीरता के किस्से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सुनाए जाते हैं जिसका प्रमाण पाक डिफेंस साईट पर मौजूद उनकी विजयगाथा है।

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    पुणे में जन्मे अरुण खेत्रपाल 13 जून 1971 को भारतीय सेना में शामिल हुए। 17 पूना हार्स में नियुक्त सेकेंड ले. अरुण खेत्रपाल को 1971 के युद्ध में 47वीं इन्फेन्ट्री की कमान सौंपी गई। टैंकों की गौरवशाली इस रेजिमेंट का इतिहास बाजीराव पेशवा द्वितीय से जुड़ता है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बीच पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर भी कब्जा करने की कोशिश की। सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल और उनकी टीम शकरगढ़ सेक्टर में तैनात थी।

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    पाकिस्तानी सेना ने अपनी फौज सियालकोट सेक्टर में तैनात कर दी। इसी दौरान शकरगढ़ सेक्टर में पाकिस्तानी टैंकों ने साम्बा नदी पार कर हमला शकरगढ़ सेक्टर में हमला बोल दिया। दरअसल, पाकिस्तानी फौज की मंशा जम्मू-कश्मीर को पंजाब से अलग-थलग करने की थी। पाकिस्तानी सेना बसंतर नदी पर बने अहम पुल पर कब्जा करने की फिराक में थी। इस पुल पर कब्जा कर वह कश्मीर और पठानकोट के बीच का संपर्क खत्म करना चाहते थे, ताकि भारतीय सेना मदद न पहुंचा सके।

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सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल शकरगढ़ सेक्टर में 17 पूना हार्स के साथ थे। मात्र 21 साल के ले. अरुण खेत्रपाल की ट्रेनिंग पूरी होने में भी अभी कुछ हफ्ते बचे थे। कर्नल हनुमंत सिंह 17 पूना हॉर्स का नेतृत्व कर रहे थे। इसी बीच खबर मिली कि पाकिस्तान बसंतर नदी पर बने पुल पर कब्जा करने की फिराक में है। 16 दिसंबर, 1971 के दिन सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल दुश्मन के इलाके में अकेले रह गए थे। तभी सामने से 14 पाकिस्तानी टैंकों की स्क्वाड्रन ने हमला बोल दिया। अरुण अकेले ही उनसे भिड़ गए। दुश्मन के इलाके में अकेले लोहा ले रहे अरुण अरुण को वापस आने का हुक्म दिया लेकिन अरुण ने कहा कि मेरे टैंक की बंदूक अभी काम कर रही है, मैं दुश्मनों को गिराकर ही आऊंगा। यह कहने के बाद उन्होंने अपना रेडियो सेट ऑफ कर दिया जबरदस्त वीरता दिखाते हुए कई पाकिस्तानी टैंक धराशायी कर दिए। लेकिन 100 मीटर की दूरी पर बचे आखिरी टैंक का एक गोला सीधे उनके टैंक से जा टकराया और वह शहीद होगए। 


 

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