Edited By Mansa Devi,Updated: 30 Jul, 2025 05:07 PM

अगर आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं और SIP के बारे में सोचते हैं कि 'सही समय पर निवेश' ही सफलता की कुंजी है, तो यह खबर आपके लिए है। Motilal Oswal Mutual Fund की एक हालिया स्टडी ने इस आम धारणा को चुनौती दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, SIP में निवेश शुरू...
नेशनल डेस्क: अगर आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं और SIP के बारे में सोचते हैं कि 'सही समय पर निवेश' ही सफलता की कुंजी है, तो यह खबर आपके लिए है। Motilal Oswal Mutual Fund की एक हालिया स्टडी ने इस आम धारणा को चुनौती दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, SIP में निवेश शुरू करने का समय चाहे मार्केट में ऊपरी स्तर पर हो या निचले स्तर पर, लंबे समय में दोनों ही निवेशकों को लगभग समान रिटर्न मिलता है। इसका सीधा मतलब है कि SIP को 'पैसा छापने की मशीन' बनाने के लिए उसमें लंबे समय तक बने रहना सबसे ज़्यादा फायदेमंद है।
Motilal Oswal स्टडी: अलग-अलग दौर में SIP का प्रदर्शन
Motilal Oswal ने पिछले दो दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह साबित किया है:
साल 2000-2005: डॉट कॉम क्रैश और रिकवरी का दौर
इस दौरान निफ्टी 500 इंडेक्स का PE रेशियो 24 फरवरी 2000 को 37.26 (सबसे ऊपर) और 21 सितंबर 2001 को 11.58 (सबसे नीचे) था।
नतीजा: फरवरी 2000 को SIP शुरू करने वाले निवेशक को 15.47% का CAGR (कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट) मिला। वहीं, सितंबर 2001 को SIP शुरू करने वाले को 15.55% का CAGR मिला। यानी, बाजार की स्थिति पूरी तरह अलग होने के बावजूद दोनों निवेशकों को लगभग एक जैसा रिटर्न मिला।
साल 2006-2010: वैश्विक मंदी का दौर और रिकवरी
इस अवधि में शेयर बाजार ने एक तेज़ रफ़्तार बुल रन देखा, फिर 2008 की वैश्विक मंदी आई और बाद में धीरे-धीरे रिकवरी हुई।
नतीजा: जनवरी 2008 को SIP शुरू करने वाले (जब PE 27.07 था) को 13.97% का रिटर्न मिला। अक्टूबर 2008 को SIP शुरू करने वाले (जब PE 9.29 था) को 14.36% का रिटर्न मिला। फिर से, दोनों को लगभग समान रिटर्न मिला।
साल 2011-2015: 'फ्रैजाइल फाइव' और मोदी सरकार की उम्मीदें
2013 में भारत 'फ्रैजाइल फाइव' (Fragile Five) देशों में गिना गया, जिससे बाजार में भारी गिरावट आई। लेकिन 2014 में चुनावी माहौल ने बाजार को फिर से रफ़्तार दी।
नतीजा: अगस्त 2013 को SIP शुरू करने वाले को 14.89% रिटर्न मिला। अगस्त 2015 को SIP शुरू करने वाले को 15.26% का रिटर्न मिला। यह फिर साबित करता है कि समय की बजाय नियमित और लंबे समय तक किया गया निवेश ज़्यादा मायने रखता है।