Edited By Parminder Kaur,Updated: 26 Jul, 2024 02:30 PM
शहर से सटे पचेंडा कला गांव के लांसनायक बचन सिंह कारगिल युद्ध में लड़ते हुए 12 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी पर शहीद हो गए थे। उस समय उनके छह साल के जुड़वां बेटे हेमंत और हितेश शहादत का मतलब भी नहीं जानते थे, लेकिन शहीद की पत्नी कामेश बाला ने शहादत का...
नेशनल डेस्क. शहर से सटे पचेंडा कला गांव के लांसनायक बचन सिंह कारगिल युद्ध में लड़ते हुए 12 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी पर शहीद हो गए थे। उस समय उनके छह साल के जुड़वां बेटे हेमंत और हितेश शहादत का मतलब भी नहीं जानते थे, लेकिन शहीद की पत्नी कामेश बाला ने शहादत का सम्मान करते हुए एक बेटे को सेना में भेजने का संकल्प ले लिया था।
पिता के सपने को साकार करते हुए बेटे हितेश ने उसी राजपूताना राइफल्स में अफसर के रूप में कमीशन लिया, जिसमें पिता लांसनायक थे। शुरुआत में कामेश को दोनों बच्चों को फौज में भेजने का जुनून था। बचन सिंह जब फौज में थे, तभी वह दोनों बेटों को लेकर गांव से मुजफ्फरनगर आ गई थीं ताकि उनकी पढ़ाई ठीक से हो सके।
सपना साकार किया
वर्ष 2016 में स्नातक करने के बाद इसी साल हितेश का चयन देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में हो गया। जून, 2018 में हितेश की पासिंगआउट परेड संपन्न होते ही कामेश बाला की कसम भी पूरी हुई। हितेश अभी सेना में मेजर हैं और अभी उनकी तैनाती दिल्ली में अग्निवीर प्रशिक्षण शाखा में है।