पिता की मौत के बाद SBI Bank ने नहीं दिया FD का पैसा, उपभोक्ता आयोग ने ठोका जुर्माना, अब देनी होगी मोटी रकम...

Edited By Updated: 04 Oct, 2025 10:51 AM

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केरल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को एक मृत ग्राहक की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की रकम जारी करने से इनकार करना भारी पड़ गया है। एर्नाकुलम जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने बैंक को FD की पूरी राशि ब्याज समेत लौटाने और मृतक के बेटे को मानसिक पीड़ा के...

कोच्चि: केरल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को एक मृत ग्राहक की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की रकम जारी करने से इनकार करना भारी पड़ गया है। एर्नाकुलम जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने बैंक को FD की पूरी राशि ब्याज समेत लौटाने और मृतक के बेटे को मानसिक पीड़ा के लिए मुआवज़ा देने का आदेश दिया है।

यह मामला एर्नाकुलम जिले के व्यट्टिला निवासी पी. पी. जॉर्ज से जुड़ा है, जिन्होंने शिकायत में बताया कि उनके पिता पी. वी. पीटर ने वर्ष 1989 में स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर (SBT) की व्यट्टिला शाखा में ₹39,000 की सावधि जमा (FD) करवाई थी। जून 2022 में पिता के निधन के बाद, जॉर्ज ने FD की राशि लेने के लिए बैंक से संपर्क किया। हालांकि, तब तक SBT का SBI में विलय हो चुका था। बैंक ने दावा किया कि रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं और इस वजह से FD की रकम जारी नहीं की जा सकती। इस जवाब से असंतुष्ट होकर जॉर्ज ने उपभोक्ता आयोग का दरवाज़ा खटखटाया।

सबूतों की पुख्ता प्रस्तुति
जॉर्ज ने अपनी शिकायत के साथ मूल FD रसीद, पिता का मृत्यु प्रमाणपत्र, अपना जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड और अन्य जरूरी दस्तावेज पेश किए। इसके बाद आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता का दावा पूरी तरह वैध है और बैंक का तर्क कि रिकॉर्ड  गुम हैं, ग्राहकों की जिम्मेदारी नहीं बनती।

क्या कहा आयोग ने?
आयोग ने स्पष्ट किया कि यदि कोई जमाराशि लंबे समय तक अनक्लेम्ड रहती है और उसे RBI को ट्रांसफर कर दिया गया हो, तब भी जमाकर्ता या उनके उत्तराधिकारी का उस धन पर अधिकार खत्म नहीं होता।
आयोग ने SBI को निर्देश दिया कि वह:-
-₹39,000 की FD राशि निर्धारित ब्याज सहित लौटाए।
-शिकायतकर्ता को मानसिक उत्पीड़न के लिए ₹50,000 मुआवज़ा दे।
-और साथ ही ₹5,000 मुकदमे का खर्च भी चुकाए।
-इन आदेशों के पालन के लिए बैंक को 45 दिन की समय-सीमा दी गई है।

 बैंकों के लिए चेतावनी भरा फैसला
यह फैसला उन मामलों की एक मिसाल है, जहां बैंकों द्वारा विलय या रिकॉर्ड की कमी का हवाला देकर उपभोक्ताओं को उनकी वैध जमा राशि से वंचित करने की कोशिश की जाती है। आयोग ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि विलय या रिकॉर्ड-प्रबंधन में खामी का खामियाजा ग्राहक को नहीं भुगतना चाहिए।

 क्यों अहम है यह फैसला?
भारत में आज भी लाखों FD धारकों और उनके उत्तराधिकारियों को बैंकिंग प्रक्रियाओं की जटिलता और लापरवाही का सामना करना पड़ता है। यह आदेश साबित करता है कि यदि आपके पास वैध दस्तावेज़ हों तो बैंकिंग संस्थाओं की जवाबदेही तय की जा सकती है। 

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