Edited By Rohini Oberoi,Updated: 27 Jun, 2025 03:41 PM
भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला ने इतिहास रचते हुए अंतरिक्ष का सफर पूरा कर लिया है। 28 घंटे की लंबी यात्रा के बाद गुरुवार को वे सफलतापूर्वक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में दाखिल हुए। अंतरिक्ष की बात करें तो वहाँ पहुँचने के बाद...
नेशनल डेस्क। भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला ने इतिहास रचते हुए अंतरिक्ष का सफर पूरा कर लिया है। 28 घंटे की लंबी यात्रा के बाद गुरुवार को वे सफलतापूर्वक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में दाखिल हुए। अंतरिक्ष की बात करें तो वहाँ पहुँचने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों का सारा शेड्यूल बदल जाता है और वे वहीं के हिसाब से काम करते हैं। ISS धरती से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर लोअर अर्थ ऑर्बिट में स्थित है। यह एक विशाल वैज्ञानिक लैब है जहाँ अंतरिक्ष यात्री लगातार रिसर्च करते रहते हैं। आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स अपना काम और नींद कैसे पूरी करते हैं जब धरती के दिन-रात का हिसाब ही बदल जाता है।
अंतरिक्ष में कैसे पूरी करते हैं नींद?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को अमेरिका, कनाडा, रूस, जापान और यूरोप ने मिलकर बनाया है। यह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घूमता है और हर 90 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर लेता है। इसका मतलब है कि यहाँ पर हर 45 मिनट में अंतरिक्ष यात्रियों को दिन-रात देखने को मिलते हैं और वे दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देख सकते हैं। यह हिसाब धरती के 24 घंटे से बिल्कुल अलग है।
ISS पर समय कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम के अनुसार चलता है। यहाँ अंतरिक्ष यात्री 24 घंटे के हिसाब से अपने शेड्यूल को फॉलो करते हैं। बाहर भले ही दिन-रात लगातार बदलते रहते हों लेकिन स्पेस स्टेशन पर सुबह 6 बजे दिन शुरू हो जाता है और यही शेड्यूल उनके काम और आराम को संतुलित करता है।
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अंतरिक्ष यात्री अपनी नींद 8 घंटे में पूरी करते हैं। इसके लिए वे स्लीपिंग बैग्स का इस्तेमाल करते हैं जो दीवारों पर टंगे होते हैं। वहाँ शून्य गुरुत्वाकर्षण में धरती जैसे बेड नहीं होते हैं। इसके अलावा खिड़कियों पर शेड्स लगा दिए जाते हैं ताकि जब सूर्योदय हो तो उसकी तेज़ रोशनी आँखों पर असर न डाले और वे आराम से सो सकें। नींद का समय UTC के अनुसार ही फिक्स होता है।
काम और मनोरंजन का शेड्यूल
अंतरिक्ष यात्री दिन में 8-10 घंटे काम करते हैं। इस दौरान उनके शेड्यूल में वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट्स, स्टेशन का मेंटेनेंस और अनिवार्य रूप से एक्सरसाइज शामिल होती है। हर दिन का टास्क ग्राउंड कंट्रोल (धरती पर मौजूद नियंत्रण केंद्र) को भेज दिया जाता है। हर दिन दो घंटे की एक्सरसाइज अनिवार्य रूप से की जाती है ताकि शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण उनकी मसल्स कमजोर न पड़ें और हड्डियाँ प्रभावित न हों। बाकी का समय मीटिंग्स और आपसी चर्चा में बीत जाता है।
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खाने-पीने की बात करें तो एस्ट्रोनॉट्स का खाना फ्रीज-ड्राइड और वैक्यूम पैक्ड होता है। इसमें चावल, फ्रूट्स जैसी चीजें होती हैं। खाने को गर्म करने के लिए वहाँ पर छोटे ओवन होते हैं और पानी को रिसाइकिल करके इस्तेमाल किया जाता है ताकि कमी न हो।
दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखना सुनने में भले ही बहुत रोमांचक लगता हो लेकिन यह शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत थका देने वाला हो सकता है। इससे निपटने और तनाव कम करने के लिए एस्ट्रोनॉट्स किताबें पढ़ते हैं, म्यूजिक सुनते हैं और धरती की तस्वीरें लेते हैं। इसके अलावा वे ग्राउंड कंट्रोल के ज़रिए अपने परिवारों से फोन पर बात भी करते हैं जिससे उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूती मिलती है और मिशन के दौरान तनाव कम होता है।