भारत-नेपाल बॉर्डर पर क्यों नहीं लगता वीज़ा-पासपोर्ट? आखिर क्या है ‘ओपन बॉर्डर’ की असली वजह?

Edited By Updated: 11 Sep, 2025 04:20 PM

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भारत और नेपाल के बीच नजदीकी सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक स्तर पर भी गहरी है। दोनों देशों के बीच लगभग 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है, जहां लोगों और व्यापार की आवाजाही बिना वीज़ा के संभव है। लेकिन...

नेशनल डेस्क: क्या आपने कभी सोचा है कि नेपाल जाने के लिए वीज़ा या पासपोर्ट क्यों नहीं लगता? भारत और नेपाल के बीच ऐसी कौन-सी पुरानी डील है, जो दोनों देशों की सीमाओं को इतना खुला और आज़ाद बनाती है? इसका जवाब छुपा है एक 75 साल पुराने समझौते में, जिसने दो पड़ोसी देशों को न सिर्फ़ कागज़ों पर, बल्कि ज़मीन पर भी बेहद करीब ला दिया। आइए जानें इस ‘ओपन बॉर्डर’ की असली वजह और उसके पीछे की कहानी।

1950 की संधि ने रखी बुनियाद
बता दें कि भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच लगभग 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है,  31 जुलाई 1950 को भारत और नेपाल ने ‘शांति और मैत्री’ संधि पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सहयोग, शांति और मित्रता को बनाए रखना था। इसमें तय किया गया कि भारत और नेपाल एक-दूसरे के नागरिकों को रोज़गार, व्यापार, निवास और संपत्ति खरीदने जैसे अधिकार देंगे। साथ ही, ये दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करेंगे और किसी तीसरे देश के साथ संबंधों पर एक-दूसरे को सूचित करेंगे।

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क्यों है यह समझौता खास?
नो वीज़ा एंट्री:
भारत और नेपाल के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं।

आर्थिक आज़ादी: दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे की भूमि में रोज़गार और व्यवसाय करने की अनुमति है।

रणनीतिक साझेदारी: नेपाल अगर किसी अन्य देश से हथियार खरीदना चाहता है, तो उसे भारत को पहले जानकारी देनी होती है।

संप्रभुता का सम्मान: किसी भी तरह की अंतरराष्ट्रीय उलझन या रणनीतिक फैसले पर आपसी सलाह की शर्त रखी गई है।

नेपाल को क्यों है आपत्ति?
हाल के वर्षों में नेपाल के भीतर इस समझौते को लेकर असंतोष की आवाज़ें तेज़ हुई हैं। नेपाल का कहना है कि: स्वतंत्र विदेश नीति पर असर: अनुच्छेद 2 के अनुसार, नेपाल को अगर चीन या किसी और देश से संबंध बनाना है, तो उसे भारत से सलाह करनी होती है। नेपाल इसे अपनी संप्रभुता पर हस्तक्षेप मानता है। पुरानी सत्ता से समझौता: नेपाल की दलील है कि 1950 की यह संधि राणा शासकों से की गई थी, जो उस समय जनता के बीच अलोकप्रिय थे। इसलिए यह समझौता लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नहीं हुआ।

समानता की कमी: नेपाल के कुछ राजनीतिक वर्गों का मानना है कि यह संधि भारत के हितों को ज़्यादा फायदा पहुंचाती है।

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1988 का विवाद: जब चीन से हथियार आए
1988 में नेपाल ने चीन से हथियार आयात किए, जिसे भारत ने 1950 की संधि का उल्लंघन बताया। इसके बाद भारत ने नेपाल के साथ अपने ट्रांजिट पॉइंट्स को बंद कर दिया, जिससे नेपाल में ईंधन, दवा और रोज़मर्रा की वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई। नेपाल का कहना है कि उसने चीन से सीधे आयात किया, भारत के रास्ते से नहीं, इसलिए भारत को आपत्ति का अधिकार नहीं था। लेकिन भारत ने इस पर कड़ा रुख अपनाया और 17 महीने तक बॉर्डर सील कर दिया गया।

नेपाल में उठती बदलने की मांग
नेपाल की संसद और विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से कई बार यह मांग उठी है कि इस संधि की समीक्षा की जाए। विशेष रूप से अनुच्छेद 2, 6 और 7 को "असमान और एकतरफा" बताया जाता है। यहां तक कि कुछ नेपाल समर्थक नेता चुनावों में भारत-विरोधी भावनाओं को भुना कर राजनीतिक फायदा भी उठाते रहे हैं।

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फिर भी, क्यों बनी हुई है दोस्ती?
भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव भले आते रहें, लेकिन जनता से जनता का रिश्ता आज भी मजबूत है। हजारों नेपाली नागरिक भारत में काम करते हैं और बड़ी संख्या में भारतीय व्यापारी नेपाल में कारोबार करते हैं। धार्मिक पर्यटन, खासकर पशुपतिनाथ और रामायण सर्किट को लेकर भी दोनों देशों के लोग एक-दूसरे से जुड़े हैं।

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