भगवान श्री कृष्ण को बांके बिहारी क्यों बुलाया जाता है? कैसे पड़ा यह नाम और क्या है इसका रहस्य, जानें

Edited By Updated: 26 Jul, 2025 03:07 PM

why krishna is called banke bihari meaning and story

वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर में श्रद्धालुओं के बीच आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान कृष्ण के बालस्वरूप बांके बिहारी जी के दर्शन करने वृंदावन पहुंचते हैं।

नेशनल डेस्क: वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर में श्रद्धालुओं के बीच आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान कृष्ण के बालस्वरूप बांके बिहारी जी के दर्शन करने वृंदावन पहुंचते हैं। लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि भगवान श्रीकृष्ण को "बांके बिहारी" क्यों कहा जाता है? इसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा और गहरी आध्यात्मिक भावना छुपी है।

कैसे पड़ा "बांके बिहारी" नाम?
बांके बिहारी भगवान श्रीकृष्ण का ही एक दिव्य रूप हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्वामी हरिदास जी, जो संगीत सम्राट तानसेन के गुरु थे, भगवान कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे। वे वृंदावन में स्थित रासलीला स्थली पर बैठकर भक्ति संगीत द्वारा श्रीकृष्ण की आराधना किया करते थे।

ऐसी मान्यता है कि स्वामी हरिदास जब भक्ति में लीन होते, तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देते। एक दिन उनके शिष्य ने उनसे निवेदन किया कि अन्य भक्त भी श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं। इसके बाद स्वामी हरिदास ने भजन गाकर भगवान से सबको दर्शन देने की प्रार्थना की।

भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने स्वामी हरिदास के अनुरोध पर उन्हें साक्षात दर्शन दिए। हरिदास जी ने निवेदन किया कि प्रभु इस रूप में सभी भक्तों के साथ रहें। इस पर राधा-कृष्ण युगल रूप में एकाकार हो गए और एक विग्रह (प्रतिमा रूप) में प्रकट हुए। इस दिव्य रूप को "बांके बिहारी" नाम स्वामी हरिदास जी ने ही दिया।

"बांके बिहारी" नाम का अर्थ क्या है?
बांके: संस्कृत शब्द "बंका" से बना है, जिसका अर्थ है मुड़ा हुआ या वक्र। यह भगवान कृष्ण की त्रिभंगी मुद्रा को दर्शाता है, जिसमें उनका शरीर तीन स्थानों पर—गर्दन, कमर और पैर—थोड़ा झुका होता है। यह उनकी चंचलता और सौंदर्य का प्रतीक है।

बिहारी: इसका अर्थ है विहार करने वाला या आनंद में लीन रहने वाला। यह नाम भगवान के वृंदावन में रासलीलाओं और आनंदपूर्ण स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है।

त्रिभंगी मुद्रा: आकर्षण का केंद्र
भगवान कृष्ण की त्रिभंगी मुद्रा को उनकी लीलामयी और आनंदित छवि के रूप में देखा जाता है। इसी मुद्रा में बांके बिहारी जी की मूर्ति विराजमान है, जो भक्तों को अत्यंत प्रिय है और जिनके दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होने का विश्वास किया जाता है।

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