कृष्णावतार

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2015 08:59 AM

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द्रौपदी के यह कहने पर कि ‘‘यदि कोई व्यक्ति एक बार भी किसी की हत्या करने का प्रयत्न करे और उसके बदले में यदि कोई उस व्यक्ति को ही समाप्त कर दे तो शास्त्रों के

द्रौपदी के यह कहने पर कि  ‘‘यदि कोई व्यक्ति एक बार भी किसी की हत्या करने का प्रयत्न करे और उसके बदले में यदि कोई उस व्यक्ति को ही समाप्त कर दे तो  शास्त्रों के अनुसार न वधिक दोषी होता है और न ही संसार के विधान के अनुसार।’’ 

भीम ने उत्तर दिया, ‘‘हां द्रौपदी इसी भूल का तो सुधार करना चाहता हूं मैं अब। शास्त्रों में तो यह भी लिखा है कि कपटी पुरुष को कपट करके भी मार डालने से पाप नहीं लगता।’’

‘‘भैया भीम तुम जो कुछ भी कहोगे वह सब मैं सहन करता रहूंगा परंतु 13 वर्ष समाप्त होने से पहले मैं अपनी ओर से कोई ऐसी आज्ञा नहीं दे सकता जो मेरे वचन को असत्य प्रमाणित करे। जब तुम बिना कपट के भी दुर्योधन, कर्ण आदि का विनाश करने में समर्थ हो तो फिर कपट की क्या आवश्यकता है! इन सबकी आयु के जितने दिन शेष हैं वह उन्हें बिता लेने दो। इस बीच उन सबके पाप का घड़ा भी भर कर छलकने लगेगा।’’ धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा।

‘‘दुख तो इसी बात का है कि आप आज भी हमें रोक रहे हैं और कल को अंधे राजा धृतराष्ट्र ने आपको ऐसी कोई आज्ञा दे डाली तो आप हमें दुर्योधन की गदा के आगे घुटनों के बल बैठ जाने और कर्ण के सामने छाती नंगी करके खड़े हो जाने के लिए मजबूर करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।’’ भीम ने कहा।

‘‘और नहीं तो क्या। वह इनके परम पूज्य चाचा जी जो हैं। उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करने का ‘बड़े जी’ (युधिष्ठिर) वचन जो दे चुके हैं। वह इन्हें आज्ञा दे देंगे कि हमने चिताएं जलवाई हैं तुम सब इसमें कूद पड़ो। तो यह कूदने से पहले हम सबको जल मरने का आदेश दे देंगे।’’ द्रौपदी तुनक कर बोली। 

(क्रमश:)

 

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