Edited By ,Updated: 21 Sep, 2015 08:14 AM
अनेक लोगों की यह धारणा है कि श्रीमती राधारानी की बात शास्त्रों में नहीं है किन्तु श्री ब्रह्मवैवर्त्त पुराण, श्रीपद्म पुराण, श्रीदेवी भागवत, श्री राधा तन्त्र, श्रीराधा वराह कल्प, इत्यादि में श्रीमती राधा जी का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
अनेक लोगों की यह धारणा है कि श्रीमती राधारानी की बात शास्त्रों में नहीं है किन्तु श्री ब्रह्मवैवर्त्त पुराण, श्रीपद्म पुराण, श्रीदेवी भागवत, श्री राधा तन्त्र, श्रीराधा वराह कल्प, इत्यादि में श्रीमती राधा जी का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
श्रीमती राधा जी श्रीकृष्ण के बाईं ओर से प्रकट हुईं, अतः आप श्रीकृष्ण से अभिन्न हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर आना था, तब श्रीमती राधा जी भी गोलोक से यहां पर आईं।
एक दिन वृषभानु राज यमुना नदी के तट पर सर्वोत्तम कन्या की प्राप्ती के लिए योगमाया की आराधना कर रहे थे। योगमाया कात्यानी उनकी आराधना से संतुष्ट हो गई वे एक दिन उनके सामने प्रकट हो कर बोलीं, "ये तेजोमय अण्डा सम्भालो। इसको अपनी पत्नी को दे देना। तुम्हें कन्या रत्न प्राप्त होगा। "
श्रीवृषभानु जी ने घर जाकर जैसे ही वो अण्डा अपनी पत्नी श्रीमती कीर्तिदा देवी को दिया, वो अण्डा फूट गया। उसमें से श्रीमती राधा रानी प्रकट हो गईं।
कुछ विद्वानों के अनुसार श्री वृषभानु राज जी की तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीमती राधा रानी एक बहुत सुन्दर 100 पंखुड़ियों वाले कमल पर स्वयं उनके सामने प्रकट हो गई। श्रीवृषभानुराज बहुत आश्चर्यचकित हुए लेकिन कन्या को देख कर बहुत प्रसन्न हुए। किन्तु जब उन्होंने देखा की कन्या की आंखें बन्द हैं, तो बहुत दुःखी हुए।
कन्या को उठा कर वे घर ले आए। पत्नी श्रीमती कीर्तिदा को कन्या को सौंप दिया किन्तु हर समय पुत्री के नयन बंद देखकर, अत्यन्त दुःखी मन से समय काटने लगे। एक दिन उनके मित्र श्रीनंद महाराज अपनी पत्नी श्रीमती यशोदा देवी व शिशु गोपाल के साथ श्रीवृषभानु राज की पुत्री को देखने आए।
श्रीवृषभानु जी और माता किर्तिदा ने उनका खूब स्वागत किया। बातों ही बातों में श्रीवृषभानु जी ने अपना दुःख अपने मित्र को बताया। अभी बातचीत चल ही रही थी कि नंद महाराज जी के पुत्र गोपाल रेंगते-रेंगते उस कमरे में गए जहां श्रीमती राधा जी लेटी हुईं थीं जैसे ही शिशु गोपाल श्रीमती राधा जी की शैय्या का सहारा लेकर खड़े हुए, और उनका चेहरा श्रीमती राधा जी के सामने आया, तभी बालिका राधा ने अपनी आंखें खोल दीं।
श्रीमती राधा जी का यह संकल्प था कि वे आंखें खोलते ही पहले श्री कृष्ण को ही देखेंगी इसलिए श्रीकृष्ण को देखते ही राधा रानी ने नेत्र खोल लिए।
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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