श्री राधाष्टमी: दुर्लभ लक्ष्मी का वरदान पाने के लिए करें श्री राधारानी जी की स्तुति

Edited By ,Updated: 21 Sep, 2015 09:56 AM

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भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं- ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यंत सम्पूर्ण जगत मिथ्या है। केवल त्रिगुणातीत परम ब्रह्म परमात्मा श्री राधा वल्लभ श्री कृष्ण ही परम सत्य हैं, पुराणवेत्ता महापुरुषों के निर्णयानुसार श्री राधा श्री कृष्ण की आराधना करती हैं और

भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं- ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यंत सम्पूर्ण जगत मिथ्या है। केवल त्रिगुणातीत परम ब्रह्म परमात्मा श्री राधा वल्लभ श्री कृष्ण ही परम सत्य हैं, पुराणवेत्ता महापुरुषों के निर्णयानुसार श्री राधा श्री कृष्ण की आराधना करती हैं और श्री कृष्ण श्री राधा की। वे दोनों परस्पर आराध्य और आराधक हैं।

लीलाक्रम से गोलोकधाम में गोप सुदामा के श्राप वश श्री राधा जी को गोलोक से भूलोक आना पड़ा। श्री राधा जी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को वृषभानु गोप तथा उनकी पत्नी कलावती र्कीतदा के गृह निवास में अवतीर्ण हुईं। श्री राधा जी परात्पर ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण जी के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं। पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने श्री राधा जी के चरणारविंद का दर्शन प्राप्त करने के लिए पुष्कर में साठ हजार वर्षों तक तपस्या की। गोलोक धाम से वसुदाम गोप ही वृषभानु होकर इस भूतल पर आए थे।

आदिकाल में सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के रासमंडल में श्री राधा जी की स्तुति एवं पूजा की। वेदमाता सावित्री को प्राप्त कर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने श्री राधा जी का पूजन किया था। एक समय श्री राधा जी श्री कृष्ण जी के समीप से अंर्तध्यान हो गईं। तब ब्रह्मादि सब देवगण श्री हीन एवं शक्तिहीन हो गए। परिस्थिति पर विचार कर सबने भगवान श्री कृष्ण की शरण ली। 

तब परमात्मा श्री कृष्ण जी ने श्री राधिका जी का स्तवन् किया ‘सुमुखि श्री राधे! तुम मेरे पांचों प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हो। तुम प्राकृत गुणों से रहित होते हुए भी अपनी कला से सगुण रूप में प्रकट होती हो। तुम वास्तव में निराकार हो, भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए ही तुम रूप धारण करती हो। तुम मूल प्रकृति ईश्वरी हो। वैकुंठ में महालक्ष्मी तथा सरस्वती के रूप में तुम्हारा ही निवास है। ब्रह्मलोक में सावित्री के रूप में तुम्हीं रहती हो। गोलोक में तुम ही गोपालों की अधीश्वरी श्री राधा हो। तुम्हें शक्ति के रूप में पाकर शिव शक्तिमान हुए। गंगाधर शिव तुम्हें ही गंगा रूप में अपने मस्तक पर धारण करते हैं, लक्ष्मी रूप में तुम्हें प्राप्त करके नारायण जगत का पालन करते हैं तथा सावित्री के रूप में तुमको प्राप्त करके ब्रह्मा जी वेदों के प्राकट्यकर्ता माने गए हैं। तुम से ही सर्वजगत शक्तिमान है। तुम्हीं शक्ति स्वरूपा हो। 

इस प्रकार श्री राधा जी की स्तुति करके जगत प्रभु श्री कृष्ण ने श्री राधा जी को प्राप्त किया। तब सभी देवगण श्री एवं शक्ति सम्पन्न हो गए। श्री राधा जी की स्तुति के प्रभाव से भगवान शिव ने सती जी को पुन: पार्वती जी के रूप में प्राप्त किया। पूर्वकाल में ऋषि दुर्वासा के श्राप से देवता श्री हीन हो गए। इसी स्तुति से श्री राधा जी को प्रसन्न कर देवताओं ने दुर्लभ लक्ष्मी प्राप्त की।

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