Edited By ,Updated: 12 Dec, 2015 10:17 AM
एक संत थे। बड़े तपस्वी और बहुत संयमी। लोग उनके धैर्य और संयम की खूब प्रशंसा करते थे। एक दिन उनके मन में यह विचार आया कि उन्होंने......
एक संत थे। बड़े तपस्वी और बहुत संयमी। लोग उनके धैर्य और संयम की खूब प्रशंसा करते थे। एक दिन उनके मन में यह विचार आया कि उन्होंने अपने खान-पान पर तो नियंत्रण कर लिया, लेकिन दूध पर नहीं कर पाए। दूध पीना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। अब उन्होंने उसे भी छोड़ देने का मन बना लिया। कुछ दिनों के बाद उन्होंने दूध पीना बिल्कुल छोड़ दिया। यह देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। संत ने अपने इस व्रत का भी कड़े नियम से पालन किया। ऐसा करते हुए फिर उन्हें कई साल बीत गए।
एक दिन अचानक जाने क्या हुआ, संत के मन में विचार आया कि चलो आज दूध पिया जाए। फिर तो कुछ ऐसा होता गया कि न चाहते हुए भी उनकी दूध पीने की इच्छा प्रबल होती गई। ठीक उसी समय उन्हें एक बड़े सेठ की हवेली से भोजन करने का बुलावा आ गया। उन्होंने सेठ का संदेश पाते ही उसके संदेशवाहक से कहा, ‘‘सेठ जी, आज तो मैं सिर्फ दूध पीना चाहूंगा।’’
उधर सेठ जी को यह पहले से मालूम था कि संत ने दूध न पीने का कठिन किन्तु दृढ़ निश्चय किया हुआ है। फिर भी शाम को ही सेठ जी ने 40 घड़े संत की कुटिया के बाहर रखवा दिए। उन सभी में लबालब दूध भरा हुआ था। कुछ देर बाद सेठ जी संत के पास पहुंचे और संत से बोले, ‘‘आप यह पूरा दूध पी लीजिए।’’
संत ने कहा, ‘‘मुझे ही तो दूध पीना है, फिर आप इतने घड़े क्यों ले आए?’’
सेठ जी ने कहा, ‘‘महाराज आपने दूध पीना 40 साल से छोड़ रखा है, उस हिसाब से दूध के 40 बड़े-बड़े घड़े आपके सामने हैं।’’
संत, सेठ की बातों का मर्म समझ गए। उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘‘मैंने अपने टूटते संयम पर अब नियंत्रण पा लिया है।’’